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पाकिस्तान में अल्पसंख्यक होने का दर्द

मेरे विचार
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गत दिनों पाकिस्तान के  कराची शहर  में बिल्डरों द्वारा प्राचीन हिन्दू मंदिर को गिराए जाने के मामले ने एक बार फिर दिखा दिया है कि पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक हिंदू कितने असुरक्षित हो गए हैं।प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार बिल्डर मंदिर तोड़ने के लिए शनिवार सुबह पहुंचे जब उच्च अदालतें बंद थीं और किसी तरह का न्यायिक हस्तक्षेप नहीं हो सकता था।हिंदू समुदाय अब अपनी धार्मिक वस्तुओं, तस्वीरों और मूर्तियों को गिराए गए मंदिर के मलबे के बीच लेकर बैठा है। लेकिन क्या हिंदू समुदाय एक बड़े बिल्डर को इस स्थान से दूर रख पाएगा जहां समाज छोटे से हिंदू समुदाय के लिए संवेदनाशून्य है।
कुछ लोगों के अनुसार 100 साल पुराना राम पीर मंदिर उन मंदिरों में शामिल है जिनकी जमीन को लेकर विवाद है और बिल्डर उस विवाद का हिस्सा है। जहां ये मंदिर स्थित था उस ज़मीन पर सेना का मालिकाना हक था। 2008 में सेना इस्टेट ऑफिसर ने मंदिर और इसके आस-पास रहने वाले दर्जन भर हिंदू परिवारों को इसे खाली करने के आदेश दिए ताकि इस ज़मीन को कराची के एक बिल्डर को बेचा जा सके।
इस जमीन पर रहने वाले हिंदू परिवारों की अपील को कोर्ट ने नवंबर में खारिज कर दिया जिसके बाद इस ज़मीन को ताकत का इस्तेमाल कर खाली करवाने का रास्ता साफ़ हो गया। स्थानीय हिंदू समुदाय ने रविवार को इसके खिलाफ एक बड़ा प्रदर्शन किया और कहा कि तोड़-फोड़ दस्ते ने धार्मिक मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया और कई गरीब हिंदू परिवारों के सिर से छत छीन ली।
हिंदू-मुसलमान के बीच वैरभाव 1947 से चला आ रहा जब मुस्लिम बहुल पाकिस्तान को धार्मिक आधार पर एक अलग राष्ट्र बनाया गया था। अधिकतर ऊंची जाति के हिंदू पाकिस्तान छोड़कर भारत चले गए जबकि दलित जाति के हिंदू पाकिस्तान में ही रह गए जो मुख्य रूप से गरीब और अनपढ़ हैं। 1980 में जब इस्लामी चरमपंथ का दौर आया तो असुरक्षित हिंदू समुदाय और ज्यादा असुरक्षित हो गया।
पिछले कुछ वर्षों में हिंदुओं को सिलसिलेवार ढंग से महिलाओं के अपहरण और जबरन धर्मांतरण का सामना करना पड़ा है। इस तरह के कदमों को अकसर निगरानी गुटों का संरक्षण मिला होता है। इन गुटों का काम होता है, अल्पसंख्यक हिंदुओं पर दबाव बनाना। इस बात के सबूत मिले थे कि फरवरी 2012 में जब 17 वर्षीय हिंदू लड़की रिंकल कुमारी मीरपुर माथेलो से गायब हो गई थी।
सिंध प्रांत में गायब हुई रिंकल कुमारी बाद में एक स्थानीय दरगाह में मिली थी जिसकी देख-रेख एक प्रभावशाली मुस्लिम परिवार कर रहा था। जब लड़की का धर्म परिवर्तन हुआ और उसकी एक स्थानीय मुसलमान युवक से शादी हुई तो उसकी खुशी मनाने के लिए दरगाह के हथियारबंद ज़ायरीनों ने हवा में गोलियां चलाई।हालांकि रिंकल ने अदालत में बयान दिया कि उसने अपनी मर्जी के इस्लाम को अपनाया है जबकि उसके परिवार वालों का दावा था कि उसे धमकाया गया था और असल में चार लोगों ने उसका अपहरण किया था।
मानवाधिकार संगठन कहते हैं कि इस तरह के दर्जनों मामले हैं जहां हिंदू लड़कियों का अपहरण किया गया और उनका धर्म परिवर्तन किया गया। ये सब मामले अधिकतर सिंध प्रात के हैं जहां सबसे ज्यादा हिंदू रहते हैं।इनमें से जो अमीर हैं और व्यापारी वर्ग के हैं वो अपहरण और आपराधिक गुटों का आसान शिकार होते हैं, जिन्हें अकसर फिरौती के लिए अगवा कर लिया जाता है।
हिंदुओं के धार्मिक स्थलों का भी इसी तरह से अपमान होता है। जब हिंदू कट्टरपंथियों ने 1992 में उत्तर भारत के अयोध्या में बाबरी मस्जिद को ढहाया तब पाकिस्तान में मुस्लिम उपद्रवियों ने जवाब में पाकिस्तान भर में दर्जनों मंदिरों और हिंदू स्थलों को बर्बाद कर दिया। और तब से ही हिंदू मंदिरों पर छुटपुट हमले होते रहे हैं।मई 2012 में कुछ अज्ञात लोगों ने पेशावर में पुरातात्विक परिसर के बीच स्थित 19वीं सदी के एक मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया था। इन अज्ञात हमलावरों ने धर्म ग्रंथ, तस्वीरों में आग लगा दी गई और मूर्तियों को तोड़ दिया था।
पाकिस्तान के कानून में अब भी औपनिवेशिक समय के कानून हैं जिनमें धार्मिक स्थानों और वस्तुओं का अपमान करने के लिए सज़ा निर्धारित है। लेकिन ये समाज पर निर्भर करता है कि समाज उन्हें लागू करने के लिए कितना प्रतिबद्ध है।
पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून में इबादतगाहों को अपवित्र करने, मजहबी भावनाएं भड़काने, पैगंबर हजरत मोहम्मद की आलोचना और कुरान शरीफ को नुकसान पहुंचाने जैसे अपराधों के लिए सजा का प्रावधान है। इस कानून में कुरान को क्षति पहुंचाने वाले के लिए उम्रकैद, जबकि पैगंबर की निंदा करने वाले के लिए मौत की सजा का प्रावधान है। ईशनिंदा कानून का पहला प्रावधान इबादतगाहों से जुड़ा है। यह सभी प्रार्थना स्थलों को प्रदान करता है। यह कानून भारत-पाकिस्तान के विभाजन से पहले लाया गया था। यह वो दौर था जब सांप्रदायिक दंगों में लोग मारे जा रहे थे। कुल मिलाकर इस कानून में कुरान की प्रति या उसके किसी हिस्से को नुकसान पहुंचाने के कथित मामलों में आरोपी के इरादे के सबूत की जरूरत नहीं होती। ऐसे मामलों में सुनवाई मुस्लिम जज ही करता है, जो कि बहुधर्मी समाज में पूरी तरह से गलत है।
ईशनिंदा या पैगंबर मोहम्मद का अपमान पाकिस्तान में बहुत संवेदनशील मुद्दा है जहां 18 करोड़ की आबादी में 97 फीसदी मुसलमान हैं. मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले लोग इस कानून में सुधार की मांग कर रहे हैं. इसे 1980 में जनरल जिया उल हक ने लागू किया था.
कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस कानून का ईशनिंदा से कम लेना देना है बल्कि इसे लोग अपने निजी फायदे के लिए छोटे मोटे झगड़े निबटाने में इस्तेमाल कर रहे हैं.
हाल ही में ऐसा एक मामला रिम्शा मसीह के रूप में सामने आया था।गत  अगस्त में उस पर कुरान के पन्ने जलाने का आरोप लगा कर ईशनिंदा कानून के तहत जेल में डाल दिया गया था । बाद में पता चला कि ऐसा करने वाला मौलवी खुद था।
पिछले कुछ साल में पाकिस्तान में ईशनिंदा के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। पाकिस्तान के उदारवदी धड़े को दक्षिणपंथियों के मजबूत होते जाने से चिंता है और उनका आरोप है कि सत्ताधारी पार्टी उन्हें बढ़ावा दे रही है।कराची के ढोली खाटा क्षेत्र में सामाजिक रुप से कमज़ोर हिंदओं का प्रभावशाली बिल्डरों, सेना के ताकतवर अधिकारियों और जनता की सोच से मुकाबला है जो कि मौटे तौर पर हिंदुओं के खिलाफ इस्लामिक संगठनों के प्रभावित है।
अभी हाल में पाकिस्तान से अनेक हिन्दू परिवार भागकर भारत आये हैं। इन हिन्दुओं की शिकायत है कि पाकिस्तान में उनपर ज्यादतियां हो रही हैं। इससे परेशान होकर उन्हें पाकिस्तान से पलायन करना पड़ रहा है। चूंकि हिन्दू भारत आ रहे हैं इसलिए हमारा यह सोचना स्वभाविक होगा कि वहां हिन्दुओं पर ही ज्यादतियां हो रही है और ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है। परंतु वास्तविकता कुछ और है। दरअसल, पाकिस्तान में उन लोगों पर भी ज्यादतियां हो रही हैं जो मुसलमान हैं। ऐसे मुसलमान जो उस वर्ग के हैं जिनकी संख्या कम है। इसके अतिरिक्त वहां रहने वाले ईसाइयों और सिक्खों पर भी आये दिन जुल्म हो रहे हैं। कुल मिलाकर वहां अल्पसंख्यक किसी भी धर्म या जाति के हों सुरक्षित नहीं है। पाकिस्तान में सिर्फ हिन्दुओं पर ज्यादतियां नहीं होती हैं, परंतु शिया मुसलमानों को भी तरह-तरह के जुल्मों का सामना करना पड़ता है। हिन्दुओं और दूसरे अल्पसंख्यकों की स्थिति में एक बुनियादी अंतर यह है कि हिन्दुओं की पाकिस्तान के प्रति वफादारी पर शंका की जाती है और सभी हिन्दुओं को भारत का एजेन्ट समझा जाता है। शियाओं के साथ जिस तरह का भेदभावपूर्ण व्यवहार होता है उसे देखकर लोग सोचते हैं कि यदि आज पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना(जिन्ना शिया थे) जीवित होते तो उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया जाता। यह बात बहुत लोगों को ज्ञात नहीं है कि जिन्ना का अंतिम संस्कार सुन्नी पद्धति से किया गया था। इसी तरह का व्यवहार अहमदिया मुसलमानों के साथ किया जाता है। यहां तक कि पाकिस्तान के वकील उनका बहिष्कार करते हैं। दीवारों पर, यहां तक कि सरकारी दफ्तरों की दीवारों तक पर उनके विरुद्ध घृणास्पद बातें लिखी जाती हैं।
अनेक शहरों में रहने वाले हिन्दुओं को हिन्दू नहीं इंडियन कहा जाता है। ईसाइयों के साथ भी कोई अच्छा व्यवहार नहीं होता है, परंतु ईसाइयों ने एक नया तरीका निकाल लिया है। अनेक ईसाई मुस्लिम नाम रखने लगे हैं जिससे उनकी पहचान पाकिस्तान के बहुसंख्यक मुसलमानों से मिलजुल गई है। एक मोटे अनुमान के अनुसार 60 प्रतिशत ईसाइयों ने मुस्लिम नाम रख लिया। वैसे पाकिस्तान में जनजगणना उतनी विश्वसनीय नहीं जितनी होनी चाहिए, इसलिए यह कहना कठिन है कि पाकिस्तान में कितने हिन्दू, ईसाई या इस्लाम के अन्य पंथों के लोग है परंतु एक मोटे अंदाज के अनुसार पाकिस्तान में सात लाख हिन्दू है। इनमें से लगभग 94 प्रतिशत सिंध प्रांत में रह रहे हैं। पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं का बड़ा प्रतिशत उच्च शिक्षा प्राप्त है और वे व्यापार अन्य आर्थिक गतिविधियों, नागरिक सेवाओं के क्षेत्र में अग्रणी हैं। पाकिस्तान में जोर जबरदस्ती से धर्म परिवर्तन की बात प्राय: सुनाई पड़ती है परंतु इस बात पर ज्यादा शोर इसलिए नहीं मचता क्योंकि जिनका धर्म परिवर्तन कराया जाता है उनमें से बहुसंख्यक नीची जाति के होते हैं। इन मामलों में न्यायपालिका का रवैया भी अजीब होता है। इस तरह के तीन मामलों पर पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने विचार किया। तीनों मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने तीनों लड़कियों को उनके मुस्लिम पतियों के पास वापस भेज दिया। यह कहते हुए कि वे अपने पतियों के पास रहना चाहती हैं। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से दु:खी लड़कियों के परिवार वालों ने दावा किया कि तीनों लड़कियों से दबाव डालकर अपने पतियों के साथ रहने की बातें कहलवाई गर्इं। इस तरह के कई और मामले न्यायालयों में लंबित है। इस दरम्यान हिन्दुओं का भारत की ओर पलायन प्रारंभ हुआ। इन पलायनों के बारे में यह कहा जाता है कि वे तीर्थ करने के लिये भारत जा रहे हैं और कुछ समय बाद वापस आ जायेंगे। परंतु अनेक लोग इस बात से सहमत नहीं हैं। वे कहते हैं कि यदि वे वापस आने के इरादे से गये होते तो वे अपनी दुकाने बंद करके, अपने व्यवसाय को किसी और को देकर तथा अपनी संपत्ति को बेचकर भारत को क्यों गये होते। कुछ शहरों में भारत जाने वाले हिन्दुओं को रोते हुए बिदाई लेते देखा गया। इस बीच अल्पसंख्यकों के साथ हिंसक घटनाओं में भी बढ़ोत्तरी हुई है। एक मोटे अंदाज के अनुसार करीब तीन हजार परिवार पलायन कर चुके हैं। धार्मिक कारणों के अतिरिक्त हिन्दुओं की तुलनात्मक संपन्नता के कारण भी वे लूट एवं डकैती के शिकार होते हैं। दंबग लोग उनकी संपन्नता के कारण उन्हें अपनी हरकतों का शिकार बनाते हैं। ये लोग भले ही इस्लाम के नाम पर हिन्दुओं को सता रहे हों परंतु उनका असली मकसद संपन्न हिन्दुओं को लूटने का ही होता है। हिन्दुओं में अनुसूचित जाति के लोगों की स्थिति और चिंताजनक है। जब भी अनुसूचित जाति के लोगों पर जुल्म होते हैं तो सवर्ण हिन्दू उनके प्रति एकजुटता नहीं दिखाते।
पाकिस्तान ने पहले ही साज़िश करके अपने यहाँ से हिन्दुओं की आबादी का लगभग सफाया ही कर दिया है। क्योंकि वहां पर हिन्दू लड़कियों को जिस तरह से अगवा कर उनकी शादी ज़बरदस्ती मुसलमानों से की जाती है उसके बाद अब पाक के पास सफाई देने के लिए बचता ही क्या है ? पाक में अल्पसंख्यकों के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है यह सभी को पता है उनके अधिकार वहां पर इस तरह से सीमित कर दिए गए हैं कि अगर आज जिन्ना की रूह उन्हें देखे तो उनको भी अलग पाकिस्तान के अपने निर्णय पर शर्म महसूस होने लगेगी। एक साथ ही आज़ादी पाए पाक -बांग्लादेश और भारत में आज मानवाधिकारों की क्या स्थिति है यह पूरी दुनिया जानती है आख़िर क्या कारण है कि भारत में सभी को बराबरी का दर्ज़ा मिला हुआ है जबकि दोनों पड़ोसी देश आज भी अपने यहाँ अल्पसंख्यकों को आज भी सुरक्षा भरा माहौल नहीं दे पा रहे हैं ? इन देशों का जन्म ही नफ़रत के साथ हुआ है तभी आज इस्लामी देश होने के बाद भी दोनों देश लगातार पिछड़ते जा रहे हैं और वहां पर आम मुसलमान का जीना भी मुश्किल हो रहा है।
इसके लिए कुछ भी सोचने की ज़रुरत नहीं है क्योंकि विश्व में भारतीय संस्कृति ही एकमात्र ऐसी है जो दुश्मन के साथ भी मानवता का व्यवहार करना सिखाती है। हमारी संस्कृति सनातन है जो निरंतर होने वाले परिवर्तनों के साथ अपनी मूल भावना को साथ में लेकर चलती है ।राजनीति अपनी जगह है और आज सरकार को पाक से इस मसले पर दो टूक बात करनी चाहिए कि आख़िर वह चाहता क्या है क्योंकि यदि हिन्दू पाकिस्तान में रहना ही नहीं चाहते हैं तो उनके लिए सम्मान से जीने के अन्य रास्ते बंद तो नहीं किया जा सकते हैं ? जब हम तिब्बत से आये दलाई लामा को मानवता के नाम पर शरण दे सकते हैं और 1971 में आये या उसके बाद घुसपैठ से आये बांग्लादेशियों के साथ भी हमारा व्यवहार सामान्य ही होता है तो आख़िर इन हिन्दुओं की क्या ग़लती है जिनके पूर्वजों ने जिन्ना की बातों पर भरोसा करके पाक को ही अपना घर मान लिया था ? संसद और सरकार को इन हिन्दुओं के मसले को पाक से कड़े शब्दों में उठाना चाहिए और इस मसले पर राजनीति के चश्मे उतार कर रख दिए जाने चाहिए क्योंकि यह मसला धर्म का नहीं बल्कि अल्पसंख्यकों को जड़ से मिटाने का है और आज भारत इतना सक्षम है कि अगर वह चाहे तो पाकिस्तान में बचे हुए सभी हिन्दुओं, सिखों और ईसाइयों को अपने यहाँ अच्छे ढंग से बसा सकता है।


विवेक मनचन्दा,लखनऊ

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