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क्या इसी को जनतंत्र कहा जाता है ?

मेरे विचार
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दिल्ली गैंगरेप पीड़िता को बचाने की हर मुमकिन कोशिश नाकाम हो गई। शरीर के कई अंगों के काम बंद कर देने से शनिवार तड़के सिंगापुर के अस्पताल में उसका निधन हो गया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत कई लोगों ने गहरा शोक व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने शोक संदेश में कहा है कि पीड़िता की कुर्बानी को बेकार नहीं जाने दिया जाएगा। महिलाओं की सुरक्षा के लिए अहम कदम उठाए जाएंगे। वहीं केंद्रीय मंत्री कृष्णा तीरथ ने उसके दोषियों को फांसी की सजा दिए जाने की मांग की है।दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने ईश्वर से छात्रा की आत्मा को शांति और उसके परिजनों को इस पीड़ा को सहन करने की शक्ति देने की प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि इस पूरी घटना ने सिस्टम को हिलाकर रख दिया है। ये हम सब के लिए ऐसा लम्‍हा है जब हमे शर्म भी आती है और दुख भी होता है। भविष्य में ऐसी घटना दोबारा न हो इसके बारे में सोचने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘मैं हर नागरिक से प्रार्थना करती हूं कि वे संयम रखें।’ दिल्ली गैंगरेप पीड़िता को ‘दामिनी’ कहें या फिर ‘अनामिका’ या फिर भारत मां की अनमोल बेटी….वह हमलोगों को छोड़कर चली गई। साथ ही कई ऐसे सवाल छोड़ गई जिसका जवाब हमारे पास नहीं है। क्या हम इतने लाचार और मजबूर हैं कि अपनी मां, बेटी और बहन की सुरक्षा नहीं कर सकते?
दिल्ली गैंगरेप पीड़िता को बचाने की हर मुमकिन कोशिश नाकाम रही। उसकी मौत हो गई लेकिन उसके जीने का साहस देश के लिए एक मिसाल बन कर रहेगा। जिंदगी की जंग जीतने में नाकाम पीड़ित ने जिस धैर्य और साहस का परिचय दिया था वो काबिले तारीफ़ है।दरिंदगी की हद तक गुजरने के बावजदू उसने हर समय जीने का जज्बा दिखाया। वह चाहती थी कि बलात्कारियों को सजा मिले ताकि कोई और किसी की बेटी, बहन और बहू पर गलत नजर न डाले।
दिलवालों की दिल्ली में एक के बाद एक रोज बलात्कार जैसे कुकृत्य सामने आ रहे है|पिछले दिनों चलती बस में मेडिकल की छात्रा के साथ हुए अमानवीय घटना के बाद दिल्ली ही नहीं पुरे देश विशाल जनाक्रोश देखा गया|ये सिर्फ दिल्ली की ही कहानी नहीं है, लगभग देश के हर इलाके में महिलाये अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रही है और एक खौफजदा जीवन जीने को विवश है।सवाल तो यह उठता है कि आखिर इतने विशाल जनाक्रोश के बाद भी अपराधी बेखोफ क्यों है ? आखिर रोज बलात्कार जैसे संगीन जुर्म क्यों हो रहे है ?बलात्कार जैसे अपराध में नशा का सबसे बड़ा योगदान रहता है। नशे की आगोश में आने के बाद इन्सान कब इन्सान से वहशी दरिंदा बन जाता उसे खुद भी पता नहीं होता और उसकी दरिंदगी की सजा कुछ मासूम लोगो को भुगतना पड़ता है। आये दिन बढ़ते हादसों के बावजूद हर रोज शराब के कई नए ठेके खुलते है । सरकार भी दिल खोल कर लाइसेंस बाटती है क्योंकि इससे से उन्हें मोटा राजस्व मिलता है और हमारे समाज के रक्षक को हर महीने की उपरी कमाई और पीने के लिए मुफ्त की शराब।
इसके अलावा समाज में कोई भी अपराध इस वजह से होता है कि आस-पास के लोग उसे नजरंदाज कर देते है लोगों हमारी आदत बन गयी है सिर्फ अपने आप से मतलब रखने की| हमारे आस-पास कोई घटना घटती है तो हम सिर्फ एक मूक- दर्शक की तरह देखते रहते है या यह सोच कर आगे बढ़ जाते है कि इन सबसे मुझे क्या लेना , कौन पड़ने जाये बेकार के झमेले में।इससे भी अपराधियों का हौसला बढ़ता है| जिस प्रकार का विरोध इस दिल्ली गैंग रेप के बाद जनता आज दिखा रही है अगर ऐसा विरोध हर किसी अपराध के होने के समय दिखाया जाये तो अपराध कुछ हद तो कम जरुर हो सकता है।
इसके अलावा हमारी पुलिस तंत्र कि सुस्ती भी बढ़ते अपराध का एक महत्वपूर्ण कारण है ।अपराधियों से ज्यादा खौफ हमें अपनी ही पुलिस से होता है । समाज में शांति व्यवस्था और कानून व्यवस्था कायम रखना पुलिस काम है, लेकिन हमारी पुलिस को रिश्वत खाने और हफ्ता वसूलने से, बड़े-बड़े लोगो की जी हुजूरी करने से फुर्सत ही नहीं। जिन पुलिस पर जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी है वो 100, 200 रुपये में किसी भी मामूली जेबकतरे के हाथ बिक जाती है। अगर कोई आम इन्सान कई किसी अपराध की रिपोर्ट करने भी जाता है तो पुलिस रिपोर्ट तक नहीं लिखना चाहती है, जब तक की रिपोर्ट लिखने के लिए भी चढ़ावा न चढ़ाया जाये या साथ में किसी ‘बड़े’ आदमी कि सिफारिश ना हो ।अगर पुलिस जनता के दवाब में या अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए अपराधियों को पकड़ भी ले तो भी हमारे कानून में इतनी खामियां हैं कि अप्प्रधि अपराधी या तो उन कमियों की वजह से या तो बच निकलता है या सजा मिलने में इतनी देर हो जाती ही कि फिर उस सजा का मिलना और न मिलना एक बराबर होता । अपराध को रोकने केलिए सख्त और त्वरित कानून का बनना आवश्यक है।
कहने को तो हमारे देश में जनतंत्र है यानी जनता का अपना शासन लेकिन जब वही जनता अपनी बात अपनी सरकार, अपने प्रतिनिधियों तक पहुँचने की कोशिश करती है तो उन पर लाठियां भांजी जाती है । आँखों को जला देने वाले आसू गैस छोड़े जाते है। क्या इसी को जनतंत्र कहा जाता है ?सिंगापुर से सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता की मौत की खबर आने के साथ ही पुलिस ने दिल्ली वालों को गुस्से का इजहार करने पर रोक लगाने का फैसला ले लिया। लोगों का गुस्सा सड़कों तक न पहुंच सके इस कारण पिछले दिनों की तरह फिर मेट्रो पर लगाम कस दी। शनिवार सुबह 7:40 बजे से नई दिल्ली इलाके के आसपास स्थित मेट्रो के 10 स्टेशनों को अगले आदेश तक के लिए बंद कर दिया गया। अन्य दिनों की तरह शनिवार को भी मेट्रो स्टेशन सुबह छह बजे खोल दिए गए थे, इसी बीच पुलिस से प्राप्त आदेश के तहत आनन फानन में मेट्रो स्टेशन को खाली कराया गया और स्टेशन के प्रवेश व निकास द्वार को बंद कर दिया गया। सुबह कामकाज के लिए घर से निकले जो लोग मेट्रो में सफर कर रहे थे, अचानक स्टेशन बंद करने की सूचना से परेशान हो गए।
हमारा कानून अगर किसी अपराधियों को सजा दे भी दे तो हमारे राष्ट्रपति बिना अपराध की गंभीरता को समझे हुए अपनी उदारता दिखाते हुए उनकी सजा को माफ़ कर देते है इस का उदाहण है पिछले 5 सालो में हमारे देश के प्रथम महिला राष्ट्रपति द्वारा बलात्कार के 30 आरोपियों की फांसी की सजा माफ़ किया जाना ।उदाहरण 1: पांच वर्ष की अबोध बच्ची के साथ दरिदंगी करने और फिर हत्या करने वाले बंटू को फासी की सजा हुई।उदाहरण 2. मोलाईराम और संतोष यादव ने एक जेलर की 10 साल के बेटी को हवस का शिकार बनाकर हत्या कर दी इन्हे भी फांसी की सजा हुई।उदाहरण 3. सतीश नाम के एक शख्स ने 6 साल की बच्ची को शिकार बनाकर मार डाला , कोर्ट ने फँसी कि सजा सुनाई ।उदाहरण 4. बंडू बाबूराव तिड़के ने 16 साल की किशोरी को स्कूल से अगवा कर हैवानियत पूरी की और हत्या कर दी फासी की सजा हुई ।इसी तरह के कुछ मामलो के साथ करीब 30 अपराधियो की फांसी की सजा हमारी ‘महान दरियादिल पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने माफ कर दी थी । अब आप जरा सोचिये की उच्चतम न्यायालय फांसी दे भी दे तो होती क्यों नहीं है । ये सवाल तो प्रतिभा पाटिल जी से पूछने का मन तो करता ही है कि एक महिला होते हुये भी उनकी सहानू्भूति दरिंदो के साथ क्यो रही थी ।
विवेक मनचन्दा ,लखनऊ

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