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अहिंसक की हिंसा प्रलयंकारी होती है

मेरे विचार
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वर्ष 1947 से लेकर अब तक तीन युद्ध कर चुके भारत और पाकिस्तान एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं।नियंत्रण रेखा पर गत  8 जनवरी को पाकिस्तानी सैनिकों ने पुंछ सेक्टर स्थित मेंढर के क्षेत्र में हमला किया जिसमें भारतीय सेना के गश्ती दल के दो जवान शहीद हो गए।पाक सैनिक एक जवान का सिर भी काटकर अपने साथ ले गए।इतना ही नहीं, भारतीय सैनिकों की नृशंस हत्या करने के बाद पाकिस्तान इस मामले में अपना पल्ला झाडऩे की भी लगातार कोशिश कर रहा था ।
एलओसी पर बर्बर हमले को लेकर गलती मानने की जगह पाकिस्तान की सीनाजोरी जारी है।आंतक की भाषा बोलने वाला पाकिस्तान भारत को शांति का पाठ पढ़ा रहा है।पहले फौज की नापाक करतूत और अब पाकिस्तानी हुक्मरानों के झूठ पर झूठ। भारतीय जवानो से बर्बर सलूक करने वाले पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार अमन का संदेश दे रहीं थी । इंसानियत का सर कलम करने के जुर्म में अपने मुल्क के फौजियों पर कार्रवाई करने की जगह उनकी जुबान से हिन्दुस्तान के लिए नसीहत के बोल निकल रहे थे हिना रब्बानी ने कहा, ‘हम सीमा रेखा पर तीन घटनाएं देख चुके हैं| हमें लग रहा है कि सीमा के उस पार का देश युद्ध चाहता है। भारत में जिस तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है वह निराश करने वाली है| ऐसा लग रहा है कि वहां के सियासतदानों में आक्रामक बयानबाज़ी के लिए होड़ लगी है| अगर पाकिस्तान में कोई दूसरी सरकार होती तो भारत को उसी सुर में जवाब दे सकती थी, लेकिन उनकी सरकार ऐसा नहीं करेगी|
‘अब जवाबी नहीं, आक्रामक कार्रवाई होगी। जगह और समय हम तय करेंगे।’ सेनाध्यक्ष द्वारा पाकिस्तान को दी गई इस चेतावनी ने सेना के मनोबल व संप्रभुता संपन्न देश के स्वाभिमान को संजीवनी दी।सीमा पार से अपने नापाक हरकतों को अंजाम देने में जुटे पाकिस्तान को जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने  देर से मगर सख्त लहजे में पाक को चेतावनी दी, तो हिना रब्बानी खार को इसमें जंग की आहट दिखने लगी।हिना रब्बानी ने जनरल विक्रम सिंह के बयान को आक्रामक करार दिया। पाकिस्तानी विदेश मंत्री इस बात को भूल गईं कि हिन्दुस्तान के सेनापति ने कभी भी जंग की बात नहीं की। उन्होंने तो सीज फायर का करार तोड़ने वाले और सैनिक मर्यादा का मान न रखने वाले पाकिस्तानी फौज को चेतावनी दी कि वो अपनी हरकतों से बाज आए।
जिस देश की हुकूमत फौज की एक घुड़की से कांपने लगती हो, जिस पाकिस्तान की नीयत की पोल करगिल से लेकर मुंबई हमलों तक कई बार खुल चुकी हो, जिस मुल्क की सेना और आतंकवादियों की सांठगांठ से दुनिया वाकिफ हो, उस पाकिस्तान को भारत ने फिर से कड़ा संकेत देने में देरी नहीं की|सरकार ने साफ कर दिया कि प्रधानमंत्री के बयान पर इस तरह की प्रतिक्रिया जायज नहीं|जनरल विक्रम सिंह से जब हिना रब्बानी के बयान का जिक्र किया गया तो उन्होंने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी|विदेश मामलों के जानकार भी हिना रब्बानी की बयान को कटघरे में खड़ा कर दिया. विशेषज्ञों ने ये सवाल भी उठाया कि अगर पाकिस्तान की नीयत सही है तो मेंढर हमले के बाद भी सरहद के उस पार से सीज फायर बार बार क्यों तोड़ा गया|
पाकिस्तान दो भारतीय जवानों की नृशंस हत्या से जिस तरह अपना पल्ला झाड़ रहा है उससे तो स्पष्ट है कि इसने इन्कार की एक नई मुद्रा अपना ली है। पाकिस्तान कितने भी बहाने बनाए, यह तथ्य तो अपनी जगह मौजूद है ही कि नियंत्रण रेखा पर दो भारतीय जवानों की हत्या हुई थी  और उनमें से एक का सिर मिले बगैर अंतिम संस्कार करना पड़ा था । आखिर इस हैवानियत का हिसाब कौन देगा? चूंकि पाकिस्तान सिरे से इन्कार कर रहा है इसलिए भारत की चुनौती और बढ़ गई है। यदि भारतीय नीति-नियंता यह समझ रहे हैं कि कड़े बोल बोलने या तीखे तेवर दिखाने से पाकिस्तान की सेहत पर कोई असर पड़ेगा तो वे भ्रम में हैं। पाकिस्तान जिस तरह धमकी भरी भाषा का भी इस्तेमाल कर रहा है उससे यह स्पष्ट है कि वह चोरी और सीनाजोरी की अपनी चिर-परिचित राह पर ढिठाई के साथ चल रहा है। पूरे भारत को उद्वेलित करने वाली इस घटना पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय और विशेष रूप से अमेरिका ने जैसी ठंडी प्रतिक्रिया दी है उससे इसकी उम्मीद नहीं नजर आती कि भारत पाकिस्तान पर कोई दबाव बना सकने में सक्षम साबित होगा।
भारत पर युद्ध भड़काने का आरोप लगा रहीं पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार एकाएक नरम पड़ गई हैं। अब वे भारत के साथ बातचीत करना चाहती हैं।जिस पाकिस्तानी सेना की ओर से संघर्ष विराम के उल्लंघन की खबरें लगातार आ रही थीं और जो किसी भी सूरत में झुकने को तैयार नहीं दिख रही थी, उसने भी कहा है कि वह संघर्ष विराम की शर्तों का पालन करेगी।पर्दे के पीछे या कूटनीतिक स्तर पर एकाएक ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान के तेवर ढीले पड़ गए, इसकी वजह शायद कुछ समय बाद पता चले लेकिन सतह पर जो दिखता है उससे लगता है कि भारत ने एक के एक बाद जो कदम उठाए वह एक बड़ी वजह बना।
सरहद पर भारतीय सैनिक की बर्बर हत्या के बाद भारत की कड़ी प्रतिक्रिया से पाकिस्तान पूरी तरह बैकफुट पर है। पहले पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार ने बातचीत की पेशकश की थी अब भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त सलमान बशीर ने कहा कि पाकिस्तान भारत की सभी चिंताओं को समझता है। उन्होंने हाल में पैदा हुई सारी समस्याओं की जांच की बात कही है। बशीर ने कहा कि एलओसी पर सैनिक की बर्बर हत्या की भी हम जांच करवाएंगे।अनुमान लगाया जा रहा है कि अमेरिका की यात्रा पर गईं हिना रब्बानी खार को अमेरिका ने रुख पलटने के लिए राजी किया होगा। या हो सकता है कि आंतरिक अस्थिरता ने पाकिस्तान को मजबूर कर दिया होगा।
अब विशेषज्ञ कह रहे हैं कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच तनाव का माहौल घटता हुआ दिखेगा। हालांकि संबंध सामान्य कब तक हो सकेंगे यह कोई नहीं कह पा रहा है।सामरिक विशेषज्ञ सी. उदय भाष्‍कर ने कहा कि यह कारगिल के बाद बड़ी सैन्‍य हरकत है। भारत को इसका डट कर सामना करना चाहिए। 2009 में 28, 2010 में  44 और 2011 में  51 बार पाकिस्‍तान की ओर से युद्धविराम का उल्‍लंघन किया गया है। हम रिश्‍तों को बेहतर तो करना चाहते हैं, लेकिन हम उसमें तालमेल नहीं बना पाए। मसलन, क्रिकेट संबंध बहाल करने के मसले को ही लें। भारत ने पाकिस्‍तान को यह नहीं कहा कि अगर हमारे हित के बाकी मसलों पर पाकिस्‍तान ने सकारात्‍मक रुख नहीं दिखाया तो हम क्रिकेट में ज्‍यादा आगे नहीं जा सकेंगे।
हिन्दुस्तान ने अब तक पाकिस्तान की हर नापाक हरकत का जवाब धैर्य और संयम से ही दिया है|मुंबई हमले के बाद ये पहला मौका है जब भारतीय नेताओं ने कूटनीति में नरमी की जगह गरम रुख दिखाया| प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साफ कर दिया कि पाकिस्तान के बर्बर सलूक को नजरअंदाज कर दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने की बात नहीं हो सकती|
उधर पाकिस्तान ने भी सीमा पर फौजियों की संख्या बढ़ा दी।वायु सेना की यूनिट को तैयार रहने को कहा गया। जाहिर है खुले तौर पर जंग की बात कोई न कर रहा हो।लेकिन हालात जंग की आहट से इनकार नहीं कर रहे हैं ।
खेल के मैदान पर भी दोनों देशों बीच तनातनी का असर साफ़ दिख रहा है ।खेल दिलों को जोड़ता हो, लेकिन जब सरहद पार से नापाक खेल खेलता रहे, तो किस तरह खेल भावना दिखाई जाए। भारत ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पहले पाकिस्तानी हॉकी खिलाड़ियों को वापस भेजा गया। फिर महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप में पाकिस्तान की भागीदारी को रोकने को लेकर बीसीसीआई ने आईसीसी को फैसला लेने को कहा।
एलओसी पर ये तनातनी तब शुरू हुई जब दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार के लिए क्रिकेट सीरीज फिर से शुरू हुई. नई वीजा व्यवस्था के बाद शायद तल्खी कम होने का सिलसिला शुरू हो लेकिन सीमा पर कुछ ऐसा हो गया जिसके बाद पूरे देश में पाकिस्तान के प्रति गुस्सा फूट पड़ा. सवाल ये है कि जो दो भारतीय सैनिक शहीद हुए, उन्हें किसने मारा? भारत के बार बार कहने पर भी पाकिस्तान के अफसर और नेता अपनी गलती क्यों नहीं मानते?
भारत-पाकिस्तान के बीच अगर परमाणु युद्ध छिड़ा तो आखिरकार जीत भारत की ही होगी और पाकिस्तान का सफाया हो जाएगा। लेकिन इसकी उसे भारी कीमत चुकानी पड़ जाएगी। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के कार्यकाल पर आधारित एक पुस्तक में दावा किया गया है कि भारत को इसके लिए अपने 50 करोड़ लोगों की जान गंवानी पड़ जाएगी। पुलित्जर पुरस्कार विजेता लेखक और इतिहासकार टेलर ब्रांच ने दावा किया है कि वर्ष 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भारतीय नेताओं ने तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध के हालात के बाद के परिदृश्य बताए थे।
अमेरिका ने 9/11 की आतंकी घटना के परिप्रेक्ष्य में आतंकवादी देशों के विरुद्ध सैन्य अभियान चलाए हैं। हम भले ही सैन्य अभियान न चलाएं, पर पाक को अलग-थलग करने का कूटनीतिक अभियान तो चला ही सकते हैं। भारत-पाक के बीच हुए शांति समझौतों का भारत ने सदैव आदर करते हुए समझौता-शर्तो का पूरी तरह पालन किया है। 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री ने ताशकंद समझौते के तहत भारतीय सेना द्वारा जीते गए पाक के पूरे इलाकों को वापस कर दिया था।
1971 के युद्ध में भारत द्वारा 93 हजार पाकिस्तानी युद्धबंदियों को तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने शिमला समझौते के तहत पाकिस्तान को सौंप दिया था। इसके विपरीत, पाकिस्तान सदैव ऐसे शांति समझौतों का उल्लंघन करता रहा है। गांधी जी के अनुसार “किसी की सहनशीलता को उसकी कमजोरी समझना भारी भूल है। अहिंसक की हिंसा प्रलयंकारी होती है।” संभवत: पाकिस्तान हमारी सहनशीलता को हमारी कमजोरी मानता रहा है अत: इस गलतफहमी को दूर करने हेतु सेना को निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए। हमारे प्रधानमंत्री को राष्ट्र को संबोधित कर देश की जनता को सरकार के दृढ़ निश्चय और उसके क्रियान्वयन हेतु निर्णायक कार्रवाई का उद्घोष करना चाहिए।
कूटनीतिक माध्यमों से पाकिस्तान को शांति समझौतों का पालन करने, हाफिज सईद और दूसरे आतंकी सरगनाओं को भारत को सौंपने और पीओके में संचालित आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को बंद करने की “समय सीमा” निर्धारित करनी चाहिए और यदि पाकिस्तान ऎसा नहीं करता तो फिर आरपार की सैन्य कार्रवाई ही विकल्प है।
विवेक मनचन्दा,लखनऊ

वर्ष 1947 से लेकर अब तक तीन युद्ध कर चुके भारत और पाकिस्तान एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं।नियंत्रण रेखा पर गत  8 जनवरी को पाकिस्तानी सैनिकों ने पुंछ सेक्टर स्थित मेंढर के क्षेत्र में हमला किया जिसमें भारतीय सेना के गश्ती दल के दो जवान शहीद हो गए।पाक सैनिक एक जवान का सिर भी काटकर अपने साथ ले गए।इतना ही नहीं, भारतीय सैनिकों की नृशंस हत्या करने के बाद पाकिस्तान इस मामले में अपना पल्ला झाडऩे की भी लगातार कोशिश कर रहा था ।

एलओसी पर बर्बर हमले को लेकर गलती मानने की जगह पाकिस्तान की सीनाजोरी जारी है।आंतक की भाषा बोलने वाला पाकिस्तान भारत को शांति का पाठ पढ़ा रहा है।पहले फौज की नापाक करतूत और अब पाकिस्तानी हुक्मरानों के झूठ पर झूठ। भारतीय जवानो से बर्बर सलूक करने वाले पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार अमन का संदेश दे रहीं थी । इंसानियत का सर कलम करने के जुर्म में अपने मुल्क के फौजियों पर कार्रवाई करने की जगह उनकी जुबान से हिन्दुस्तान के लिए नसीहत के बोल निकल रहे थे हिना रब्बानी ने कहा, ‘हम सीमा रेखा पर तीन घटनाएं देख चुके हैं| हमें लग रहा है कि सीमा के उस पार का देश युद्ध चाहता है। भारत में जिस तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है वह निराश करने वाली है| ऐसा लग रहा है कि वहां के सियासतदानों में आक्रामक बयानबाज़ी के लिए होड़ लगी है| अगर पाकिस्तान में कोई दूसरी सरकार होती तो भारत को उसी सुर में जवाब दे सकती थी, लेकिन उनकी सरकार ऐसा नहीं करेगी|

‘अब जवाबी नहीं, आक्रामक कार्रवाई होगी। जगह और समय हम तय करेंगे।’ सेनाध्यक्ष द्वारा पाकिस्तान को दी गई इस चेतावनी ने सेना के मनोबल व संप्रभुता संपन्न देश के स्वाभिमान को संजीवनी दी।सीमा पार से अपने नापाक हरकतों को अंजाम देने में जुटे पाकिस्तान को जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने  देर से मगर सख्त लहजे में पाक को चेतावनी दी, तो हिना रब्बानी खार को इसमें जंग की आहट दिखने लगी।हिना रब्बानी ने जनरल विक्रम सिंह के बयान को आक्रामक करार दिया। पाकिस्तानी विदेश मंत्री इस बात को भूल गईं कि हिन्दुस्तान के सेनापति ने कभी भी जंग की बात नहीं की। उन्होंने तो सीज फायर का करार तोड़ने वाले और सैनिक मर्यादा का मान न रखने वाले पाकिस्तानी फौज को चेतावनी दी कि वो अपनी हरकतों से बाज आए।

जिस देश की हुकूमत फौज की एक घुड़की से कांपने लगती हो, जिस पाकिस्तान की नीयत की पोल करगिल से लेकर मुंबई हमलों तक कई बार खुल चुकी हो, जिस मुल्क की सेना और आतंकवादियों की सांठगांठ से दुनिया वाकिफ हो, उस पाकिस्तान को भारत ने फिर से कड़ा संकेत देने में देरी नहीं की|सरकार ने साफ कर दिया कि प्रधानमंत्री के बयान पर इस तरह की प्रतिक्रिया जायज नहीं|जनरल विक्रम सिंह से जब हिना रब्बानी के बयान का जिक्र किया गया तो उन्होंने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी|विदेश मामलों के जानकार भी हिना रब्बानी की बयान को कटघरे में खड़ा कर दिया. विशेषज्ञों ने ये सवाल भी उठाया कि अगर पाकिस्तान की नीयत सही है तो मेंढर हमले के बाद भी सरहद के उस पार से सीज फायर बार बार क्यों तोड़ा गया|

पाकिस्तान दो भारतीय जवानों की नृशंस हत्या से जिस तरह अपना पल्ला झाड़ रहा है उससे तो स्पष्ट है कि इसने इन्कार की एक नई मुद्रा अपना ली है। पाकिस्तान कितने भी बहाने बनाए, यह तथ्य तो अपनी जगह मौजूद है ही कि नियंत्रण रेखा पर दो भारतीय जवानों की हत्या हुई थी  और उनमें से एक का सिर मिले बगैर अंतिम संस्कार करना पड़ा था । आखिर इस हैवानियत का हिसाब कौन देगा? चूंकि पाकिस्तान सिरे से इन्कार कर रहा है इसलिए भारत की चुनौती और बढ़ गई है। यदि भारतीय नीति-नियंता यह समझ रहे हैं कि कड़े बोल बोलने या तीखे तेवर दिखाने से पाकिस्तान की सेहत पर कोई असर पड़ेगा तो वे भ्रम में हैं। पाकिस्तान जिस तरह धमकी भरी भाषा का भी इस्तेमाल कर रहा है उससे यह स्पष्ट है कि वह चोरी और सीनाजोरी की अपनी चिर-परिचित राह पर ढिठाई के साथ चल रहा है। पूरे भारत को उद्वेलित करने वाली इस घटना पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय और विशेष रूप से अमेरिका ने जैसी ठंडी प्रतिक्रिया दी है उससे इसकी उम्मीद नहीं नजर आती कि भारत पाकिस्तान पर कोई दबाव बना सकने में सक्षम साबित होगा।

भारत पर युद्ध भड़काने का आरोप लगा रहीं पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार एकाएक नरम पड़ गई हैं। अब वे भारत के साथ बातचीत करना चाहती हैं।जिस पाकिस्तानी सेना की ओर से संघर्ष विराम के उल्लंघन की खबरें लगातार आ रही थीं और जो किसी भी सूरत में झुकने को तैयार नहीं दिख रही थी, उसने भी कहा है कि वह संघर्ष विराम की शर्तों का पालन करेगी।पर्दे के पीछे या कूटनीतिक स्तर पर एकाएक ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान के तेवर ढीले पड़ गए, इसकी वजह शायद कुछ समय बाद पता चले लेकिन सतह पर जो दिखता है उससे लगता है कि भारत ने एक के एक बाद जो कदम उठाए वह एक बड़ी वजह बना।

सरहद पर भारतीय सैनिक की बर्बर हत्या के बाद भारत की कड़ी प्रतिक्रिया से पाकिस्तान पूरी तरह बैकफुट पर है। पहले पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार ने बातचीत की पेशकश की थी अब भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त सलमान बशीर ने कहा कि पाकिस्तान भारत की सभी चिंताओं को समझता है। उन्होंने हाल में पैदा हुई सारी समस्याओं की जांच की बात कही है। बशीर ने कहा कि एलओसी पर सैनिक की बर्बर हत्या की भी हम जांच करवाएंगे।अनुमान लगाया जा रहा है कि अमेरिका की यात्रा पर गईं हिना रब्बानी खार को अमेरिका ने रुख पलटने के लिए राजी किया होगा। या हो सकता है कि आंतरिक अस्थिरता ने पाकिस्तान को मजबूर कर दिया होगा।

अब विशेषज्ञ कह रहे हैं कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच तनाव का माहौल घटता हुआ दिखेगा। हालांकि संबंध सामान्य कब तक हो सकेंगे यह कोई नहीं कह पा रहा है।सामरिक विशेषज्ञ सी. उदय भाष्‍कर ने कहा कि यह कारगिल के बाद बड़ी सैन्‍य हरकत है। भारत को इसका डट कर सामना करना चाहिए। 2009 में 28, 2010 में  44 और 2011 में  51 बार पाकिस्‍तान की ओर से युद्धविराम का उल्‍लंघन किया गया है। हम रिश्‍तों को बेहतर तो करना चाहते हैं, लेकिन हम उसमें तालमेल नहीं बना पाए। मसलन, क्रिकेट संबंध बहाल करने के मसले को ही लें। भारत ने पाकिस्‍तान को यह नहीं कहा कि अगर हमारे हित के बाकी मसलों पर पाकिस्‍तान ने सकारात्‍मक रुख नहीं दिखाया तो हम क्रिकेट में ज्‍यादा आगे नहीं जा सकेंगे।

हिन्दुस्तान ने अब तक पाकिस्तान की हर नापाक हरकत का जवाब धैर्य और संयम से ही दिया है|मुंबई हमले के बाद ये पहला मौका है जब भारतीय नेताओं ने कूटनीति में नरमी की जगह गरम रुख दिखाया| प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साफ कर दिया कि पाकिस्तान के बर्बर सलूक को नजरअंदाज कर दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने की बात नहीं हो सकती|

उधर पाकिस्तान ने भी सीमा पर फौजियों की संख्या बढ़ा दी।वायु सेना की यूनिट को तैयार रहने को कहा गया। जाहिर है खुले तौर पर जंग की बात कोई न कर रहा हो।लेकिन हालात जंग की आहट से इनकार नहीं कर रहे हैं ।

खेल के मैदान पर भी दोनों देशों बीच तनातनी का असर साफ़ दिख रहा है ।खेल दिलों को जोड़ता हो, लेकिन जब सरहद पार से नापाक खेल खेलता रहे, तो किस तरह खेल भावना दिखाई जाए। भारत ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पहले पाकिस्तानी हॉकी खिलाड़ियों को वापस भेजा गया। फिर महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप में पाकिस्तान की भागीदारी को रोकने को लेकर बीसीसीआई ने आईसीसी को फैसला लेने को कहा।

एलओसी पर ये तनातनी तब शुरू हुई जब दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार के लिए क्रिकेट सीरीज फिर से शुरू हुई. नई वीजा व्यवस्था के बाद शायद तल्खी कम होने का सिलसिला शुरू हो लेकिन सीमा पर कुछ ऐसा हो गया जिसके बाद पूरे देश में पाकिस्तान के प्रति गुस्सा फूट पड़ा. सवाल ये है कि जो दो भारतीय सैनिक शहीद हुए, उन्हें किसने मारा? भारत के बार बार कहने पर भी पाकिस्तान के अफसर और नेता अपनी गलती क्यों नहीं मानते?

भारत-पाकिस्तान के बीच अगर परमाणु युद्ध छिड़ा तो आखिरकार जीत भारत की ही होगी और पाकिस्तान का सफाया हो जाएगा। लेकिन इसकी उसे भारी कीमत चुकानी पड़ जाएगी। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के कार्यकाल पर आधारित एक पुस्तक में दावा किया गया है कि भारत को इसके लिए अपने 50 करोड़ लोगों की जान गंवानी पड़ जाएगी। पुलित्जर पुरस्कार विजेता लेखक और इतिहासकार टेलर ब्रांच ने दावा किया है कि वर्ष 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भारतीय नेताओं ने तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध के हालात के बाद के परिदृश्य बताए थे। अमेरिका ने 9/11 की आतंकी घटना के परिप्रेक्ष्य में आतंकवादी देशों के विरुद्ध सैन्य अभियान चलाए हैं। हम भले ही सैन्य अभियान न चलाएं, पर पाक को अलग-थलग करने का कूटनीतिक अभियान तो चला ही सकते हैं। भारत-पाक के बीच हुए शांति समझौतों का भारत ने सदैव आदर करते हुए समझौता-शर्तो का पूरी तरह पालन किया है। 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री ने ताशकंद समझौते के तहत भारतीय सेना द्वारा जीते गए पाक के पूरे इलाकों को वापस कर दिया था।

1971 के युद्ध में भारत द्वारा 93 हजार पाकिस्तानी युद्धबंदियों को तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने शिमला समझौते के तहत पाकिस्तान को सौंप दिया था। इसके विपरीत, पाकिस्तान सदैव ऐसे शांति समझौतों का उल्लंघन करता रहा है। गांधी जी के अनुसार “किसी की सहनशीलता को उसकी कमजोरी समझना भारी भूल है। अहिंसक की हिंसा प्रलयंकारी होती है।” संभवत: पाकिस्तान हमारी सहनशीलता को हमारी कमजोरी मानता रहा है अत: इस गलतफहमी को दूर करने हेतु सेना को निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए। हमारे प्रधानमंत्री को राष्ट्र को संबोधित कर देश की जनता को सरकार के दृढ़ निश्चय और उसके क्रियान्वयन हेतु निर्णायक कार्रवाई का उद्घोष करना चाहिए।

कूटनीतिक माध्यमों से पाकिस्तान को शांति समझौतों का पालन करने, हाफिज सईद और दूसरे आतंकी सरगनाओं को भारत को सौंपने और पीओके में संचालित आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को बंद करने की “समय सीमा” निर्धारित करनी चाहिए और यदि पाकिस्तान ऎसा नहीं करता तो फिर आरपार की सैन्य कार्रवाई ही विकल्प है।

विवेक मनचन्दा,लखनऊ

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