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शर्म की बात है कि भ्रष्टाचार जैसे राष्ट्रीय मुद्दे को भी जाति के आधार पर जोड़ा जा रहा है

मेरे विचार
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जयपुर साहित्य समारोह एक बार फिर विवादों में शामिल हो गया है। कभी साहित्यकार सलमान ऱुश्दी को लेकर को लेकर विवाद खड़ा होता है तो कभी किसी साहित्यकार को लेकर विवाद पैदा हो जाता है। अगर इसे साहित्य सम्मेलन के बजाय विवाद सम्मेलन कहा जाए तो कोई गलत नहीं होगा। इसबार तो विवाद इतना बड़ा हुआ कि सम्मेलन स्थल की सुरक्षा को बढ़ाना पड़ गया। लेखक और समाजशास्त्री आशीष नंदी ने अपने एक बयान से साहित्य सम्मेलन में बवाल खड़ा कर दिया। आशीष नंदी ने सम्मेलन मे विवादास्पद बयान देते हुए कहा कि देश में भ्रष्टाचार के लिए पिछड़े और दलित जाति के लोग जिम्मेदार है।उन्होंने कहा भारत में दलित भ्रष्टाचार करने वालों में सबसे आगे हैं। उन्होंने मायावती पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि देश में दलित, एससी, एसटी और ओबीसी के लोग भ्रष्टाचार अधिक फैला रहे हैं। अपने बयान के समर्थन में उन्होंने उदाहरण भी दिए, लेकिन आशीष नंदी के बयान के बाद चारों ओर से प्रतिक्रियाओं का दौर शुरु हो गया है। हर कोई उनके बयान की आलोचना कर रहा है। राजस्थान की मीणा और जाट जातियां नंदी के इस बयान से खासा नाराज है।
अशीष ने कहा कि भारत में भ्रष्टाचार बढता जा रहा है और इसका इलाज अभी तक शुरू नहीं हो सका है। जबकि दुनियाभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकारें-लोग लामबंद हो रहे हैं।सिंगापुर ऎसा देश है जो न के बराबर भ्रष्टाचार के करीब पहुंच गया है। आशीष नंदी ने अपनी दलील के समर्थन में उदाहरण भी दिया। मंच पर ही मौजूद एक और साहित्यकार ने आशीष नंदी के बयान का ताली बजाकर स्वागत किया। वहीं मीडिया से जुडे आशुतोष ने इस बयान का कडा प्रतिवाद किया। आशीष नंदी ने जैसे ही ये बयान दिया वहां मौजूद आशुतोष ने कडा विरोध जताया। बाद में आशुतोष ने अपनी बारी आने पर नंदी के बयान पर कडी आपत्ति जताई।
साहित्य उत्सव में परिचर्चा के दौरान आशीष नंदी ने कहा, ”ज्यादातर भ्रष्ट लोग ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों के होते हैं।”उन्होंने कहा, ”जब तक ऐसा होता रहेगा, भारत के लोग भुगतते रहेंगे।”आप किसी गरीब आदमी को पकड़ लेते हैं जो 20 रूपये के लिए टिकट की कालाबाज़ारी कर रहा होता है और कहते हैं कि भ्रष्टाचार हो रहा है लेकिन अमीर लोग करोड़ों रूपये का भ्रष्टाचार कर जाते हैं और पकड़ में नहीं आते हैं।”
उनके वक्तव्य से एक मोटी बात निकल कर आई है कि पिछड़े, दलित और आदिवासी भ्रष्ट हैं और सवर्ण जातियों के लोग ईमानदार। अपनी सफाई में उन्होंने कहा कि उनके कहने का अर्थ यह था कि समाज का ऊपरी तबका अपने भ्रष्टाचार को छिपाना जानता है इसलिए पकड़ा नहीं जाता। वास्तविक स्थिति का यह अति सरलीकरण है। उनकी बात में देश के युवाओं को सच्चाई नजर आ सकती है क्योंकि इस वर्ग ने सवर्ण जातियों के राजपाट को एक हद तक जाते हुए और पिछड़ों, दलितों व आदिवासियों के राजनीतिक सशक्तीकरण का दौर देखा है। इस आयु वर्ग के लोगों ने मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, मायावती और मधु कोड़ा को सत्ता में आते और भ्रष्टाचार के आरोप लगते देखा है।सबसे ज्यादा अनिश्चित कार्यकाल मधु कोड़ा का था इसलिए उन्होंने सबसे कम समय में सबसे ज्यादा पैसा कमाया। भ्रष्टाचार के इस खेल से सवर्ण बाहर हो गए हों ऐसा भी नहीं है। जिन नेताओं का नाम आशीष नंदी ने लिया है उन सबके वित्तीय प्रबंधकों के नाम पर गौर करें तो सब सवर्ण जातियों के हैं। मधु कोड़ा के भी, जिसके भ्रष्टाचार की उपलब्धियों का जिक्र करते समय नंदी साहब लगभग गौरव का अनुभव कर रहे थे।
साहित्य जगत भी नंदी के इस बयान से आहत है। किसी भी तरह के भ्रष्टाचार का जाति या समुदाय से कोई ताल्लुक नहीं होता, ये पूरे देश की समस्या होती है, किसी व्यक्ति या जाति विशेष की नहीं।नंदी के इस बयान के बाद चारों ओर से उनके खिलाफ बयानों का दौर शुरु हो गया था। बाद में बवाल बढ़ने के बाद आशीष नंदी के खुद लोगों से माफी मांगी थी, लेकिन लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले इस बयान के बाद लोग नंदी के खिलाफ सख्त कार्रवाई चाहते हैं।
आशीष नंदी के बयान का आप विरोध कर सकते हैं, आलोचना कर सकते हैं, निंदा कर सकते हैं, लेकिन उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करना संविधान से मिले अभिव्यक्ति के अधिकार पर सीधा हमला है। नेताओं को इसमें विभाजनकारी राजनीति का एक और अवसर नजर आ रहा है। रामविलास पासवान जैसे चुके हुए नेता राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। केंद्र सरकार खामोश है। विरोधी विचारों के प्रति बढ़ती असहिष्णुता जनतंत्र के लिए अच्छी बात नहीं है।सरकारें ऐसे मसलों में कोई फैसला लेने का साहस नहीं दिखातीं।
जयपुर साहित्य सम्मेलन के आयोजक संजोय रॉय ने नंदी के बयान पर सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भ्रष्टाचार का किसी जाति-समुदाय से ताल्लुक नहीं है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार पूरे देश की बडी समस्या है। कितने शर्म की बात है कि भ्रष्टाचार जैसे राष्ट्रीय मुद्दे को भी जाति के आधार पर जोड़ा जा रहा है जो कि बहुत ही भयावह है। हम कभी नहीं सुधर सकते, इससे तो कम से कम यही साबित होता है। भ्रष्टाचारी का कोई धर्म और जाति नहीं होती है।

विवेक मनचन्दा,लखनऊ

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