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अल्पसंख्यकों को सरकारी सलाह, खून बढ़ाने के लिए खाएं गोमांस

मेरे विचार
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अजमल कसाब और अफजल गुरु को फांसी पर लटकाकर भाजपा से भावनात्मक मुद्दा छिनने वाली केंद्र सरकार ने भाजपा के हाथों में फिर एक बड़ा मुद्दा थमा दिया है। केंद्र सरकार के अल्‍पसंख्‍यक कल्‍याण मंत्रालय की पुस्तिका ‘पोषण’ विवादों में घिर गई है। सरकार का अल्पसंख्यक और राष्ट्रीय जनसहयोग एवं बाल विकास मंत्रालय यूपी के अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में शरीर में ऑक्सीजन और खून बनाने के लिए हरी पत्तेदार सब्जियों के साथ ही मुर्गा व गाय का मांस खाने की सलाह दे रहा है। इस इलाके में यह पुस्तिका बांटी जा रही है। मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है।मेरठ के मवाना में यह मामला सामने आने पर भाजपा ने गोमांस खाने की सलाह पर भाजपा नेताओं का गुस्सा फूट पड़ा। अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी का घेराव कर भाजपा ने नारेबाजी की। भाजपा ने आगामी संसद सत्र में इस मुद्दे को उठाने की घोषणा की है। भाजपा की नाराजगी के बाद इससे जुड़े अधिकारियों ने इस पुस्तिका को प्रतिबंधित करने की बात कही है।
उत्तर प्रदेश में गोवंश की हत्या प्रतिबंधित हैं, जबकि विभागीय किताब में गाय के मांस को आयरन, ऑक्सीजन तथा खून बनाने के लिए जरूरी बताया गया है।
उत्तर प्रदेश में गोरक्षा के लिए 2001 में यूपी में गोवंश निवारण अधिनियम लागू है। इसके बाद भी किसी केंद्रीय सरकार के मंत्रालय द्वारा यह पर्चा बांटना इस बात का प्रमाण है कि केंद्र सरकार गो-हत्या को बढ़ावा दे रही है।
भारत का बहुसंख्यक समाज गाय को आदर देता है। गोहत्या हिन्दुओं भावनाओं को आहत करती है।शरीर में खून की कमी हो जाने पर इंसान को कमजोरी, थकावट, शक्तिहीनता और चक्कर जैसी कई समस्याएं हो सकती हैं। ऐसा अधिकतर खून में आयरन कमी के कारण होता है। अगर आपको भी ऐसी कोई समस्या है तो आयरन की कमी को पूरा करने के लिए सेब, अनार, पपीता व सब्जी में पालक, मेथी, गाजर, बथुआ, चुकंदर, खूबानी, अंजीर आदि का सेवन करें। मुनक्का को रात में लोहे की कड़ाही में पानी में 6 घंटे भिगोने के बाद प्रयोग करें, ऐसा करने से तेजी से खून में आयरन की मात्रा बढ़ेगी। साथ ही रोजाना 15 मिनट वरूण मुद्रा करें तो जल्द ही खून की कमी पूरी हो जाएगी।
कुछ इसी प्रकार की हरकत गत वर्ष आंबेडकर जयन्ती के अवसर पर हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में दलित छात्रों ने गौमांस भोज का आयोजन किया था ।और दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में भी कुछ इसी तरह का आय्होजन करने की कोशिश की गई थी जिसे बाद में जबर्दस्त विरोध के चलते रद्द कर दिया गया था। यहाँ सवाल यह है कि दलित छात्रों ने ऐसी हरकत क्यों की ? विश्वविद्यालय एक सार्वजनिक स्थल है, वहां उन्होंने प्रतिबंधित गौमांस भोज आयोजित करके कानून क्यों तोड़ा ? यदि दलित छात्र यह दिखाना चाहते थे कि दलित संस्कृति में गौमांस वर्जित नहीं है, इसलिये वे उसे खाने के लिये स्वतन्त्र हैं, तो दलित संस्कृति में तो सूअर का मांस भी वर्जित नहीं है, फिर उस आयोजन में सूअर का मांस क्यों नहीं परोसा गया ? सूअर के मांस पर प्रतिबन्ध भी नहीं है, इसलिये वहां बीफ बिरयानी के साथ-साथ पोर्क बिरयानी भी बनायी जा सकती थी। पर दलित छात्रों ने पोर्क परोसने की हिम्मत इसलिये नहीं की, क्योंकि तब उन्हें मुस्लिम छात्रों के विरोध का भी सामना करना पड़ता। दलित छात्र यह भूल गये थे कि साप्रदायिक एकता कायम करने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। दलित होने के नाते अपने ही देश के सामाजिक वातावरण को बिगाड़ने का लाइसेंस कानून ने उन्हें नहीं दे दिया है। भारत में कहीं भी और किसी भी सार्वजनिक भोज में बीफ और पोर्क नहीं परोसा जाता है, यहाँ तक कि शादी-ब्याह के सार्वजनिक भोजों में भी नहीं। फिर वे उस्मानिया विश्वविद्यालय में दलितों द्वारा गौमांस परोसे जाने की घटना की निन्दा करने के बजाए उसका समर्थन क्यों कर रहे है ? यदि आंबेडकर पर बने कार्टून पर दलित भड़क सकते हैं, तो गौमांस पर हिन्दू क्यों नहीं भड़क सकते ? क्या हैदराबाद में हिन्दुओं के विरोध-प्रदर्शन और हिंसा के लिये उस्मानिया विश्वविद्यालय के दलित छात्र जिम्मेदार नहीं है ?
पिछले कुछ वर्षों में विश्व विद्यालय राष्ट्र द्रोहियों व धर्म द्रोहियों का अड्डा बनता जा रहा है कभी कश्मीर की आजादी की मांग उठती है तो कभी हिन्दू देवी-देवताओं का खुल्लम खुल्ला अपमान होता है। और अब तो सौ करोड़ से अधिककी जनसंख्या की पूज्या गौ माता को ही खाने की बात होने लगी. विहिप ने कहा है कि विश्व विद्यालय प्रशासन अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में विधार्थियों को कम से कम देश, समाज और धर्म के दुश्मन तो न बनाने दे।देश में वोट बैंक की राजनीति के चलते ऐसे हालात पैदा हो गये है कि वर्ग विशेष को मनमानी करने की छूट और बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं पर कुठाराघात तथाकथित सेक्युलरवादी सरकारों की नीति बन गई है।

विवेक मनचन्दा ,लखनऊ

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