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अखिलेश यादव हर मोर्चे पर पूरी तरह विफल ही साबित हुए हैं

मेरे विचार
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गत वर्ष उत्तर प्रदेश के विधान सबह चुनावों में समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत देकर अखिलेश यादव को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने वाली प्रदेश की जनता शायद अपने इस निर्णय पर अब पछता रही होगी ।2012 में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव जब मुख्यमंत्री बने तब यह कहा जा रहा था कि उत्तर प्रदेश राज्य से गुंडाराज खत्म कर दिया जाएगा। ऐसा तो नहीं हुआ उलटे अखिलेश ने अपने पिता की उस परंपरा को अपना लिया जहां पर दागियों और अपराधियों को मंत्री बनाकर उनका पुनर्वास किया जाता है।अभी सरकार के कार्यकाल को एक वर्ष भी पूरा नहीं हुआ और प्रदेश में व्याप्त जंगलराज को देखकर तो यही कहा जा सकता है अखिलेश यादव हर मोर्चे पर पूरी तरह विफल ही साबित हुए हैं।वैसे अखिलेश सरकार के लिए आरोपितों को संरक्षण देना कोई नई बात नहीं है। उन्होंने वहीं काम किया है जो उनके पिता मुलायम सिंह यादव किया करते थे। अखिलेश जब गद्दी पर बैठे उसके तीन महीने के भीतर ही जेल में बंद कई अपराधियों को बाहर पहुंचाने का बंदोबस्त कर दिया गया था। राजा भैया को मंत्री बनाकर जो शुरुआत हुई थी वह रुकी नहीं. 15 मार्च, 2012 को अखिलेश का शपथ ग्रहण हुआ और 17 मार्च तक अमरमणि त्रिपाठी और अभय सिंह जैसे अपराधियों का उनके गृह जिलों में पुनर्वास कर दिया गया था । अभय सिंह के ऊपर लगा गुंडा एक्ट सरकार के इशारे पर वापस ले लिया गया है।
देखा जाए तो 11 महीने में सपा सरकार को ज्यादातर अपनों के कारण ही किरकिरी का सामना करना पड़ा है। कुंडा के विधायक और खाद्य मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से भले ही मुख्यमंत्री ने इस्तीफा ले लिया हो, बावजूद इसके विपक्ष हमलावर है।
उत्तर पदेश के सबसे विवादित चेहरे रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के बारे में ऐसा माना जाता है कि हत्या और अपहरण इनके लिए बहुत ही मामूली चीज है। राजा भैया और उनके लोगों पर चल रहे तमाम आपराधिक मामले इस बात के सबूत हैं कि इस बाहुबली का नाता किस कदर अपराध से है।raja-bhaiya-513389fe90339_l
राजा भैया का नाम सरकार के ताकतवर मंत्रियों में शुमार रहा है। यद्यपि उनको मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद कई तरह की चर्चाएं गर्म रहीं। हाल ही में मंत्रिमंडल के फेरबदल में राजा भैया से कारागार विभाग वापस लेने के पीछे चर्चा रही कि उनके रहते जेल में बंद अपराधियों को प्रश्रय मिल रहा था। अखिलेश सरकार में उनके मंत्री बनने पर विधानसभा में नेता विपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने खाद्यान्न घोटाले का मुद्दा गरमा दिया। इसमें राजा भैया के एक पुराने सहयोगी को माध्यम बनाया गया था। इस मुद्दे को बसपा के लोग समय समय पर उछालते रहे, लेकिन कुंडा कांड की परिणति ऐसी हुई कि सरकार को तो अप्रिय स्थिति का सामना करना ही पड़ा, राजा भैया को भी मंत्री पद से हटना पड़ा। ऐसे और भी कई लोग हैं, जिनके चलते सरकार को मुश्किलों से दो चार होना पड़ा है ।
मुख्यममंत्री अखिलेश यादव या सपा नेतृत्व भले ही सब कुछ सलीके से करने की कोशिशें कर रहे हों लेकिन बीते करीब एक साल की सरकार पर खुद उसके अपनों के विवादों का काला साया ही छाया हुआ है। यह साया न केवल सत्तारूढ़ दल के लिए मुसीबत का सबब बन रहा है बल्कि विरोधी दलों को अपने तरकश से सियासी तीर छोड़ने का मौका भी दे रहा है। चाहे सरकार बनने की शुरुआत में उत्साह के अतिरेक का उदंडता में तब्दील होना हो, जीत के जश्न में फायरिंग कर कानून को ताक पर रखते एमएलए, एमएलसी और मंत्री हों या फिर गोंडा में राज्यमंत्री रहे विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह की सीएमओ से भिड़ंत, गोंडा में ही केसी पाण्डेय का पशु तस्करी में फंसना, विधुना से सपा विधायक प्रमोद गुप्ता के बेटे का टीचर को तमाचा मारना या फिर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वसीम अहमद का हटाया जाना।
हर बार खामियाजा पार्टी को भी भुगतना पड़ा। इसका दुष्प्रभाव न केवल सरकार की अच्छी नीतियों और विकास योजनाओं पर पड़ता नज़र आ रहा है बल्कि एक साल के कार्यकाल पर विवादों के ये साये और गहरे छाते दिख रहे हैं।
सीएमओ को अगवा करने में फंसे पंडित सिंह प्रकरण गोण्डा : गोण्डा में राजस्व राज्यमंत्री विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह का राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मशिन घोटाले में आयुष डॉक्टरों की नियुक्त के मसले पर सरकार को कदम खींचने पड़े।न केवल पंडित सिंह का मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर लालबत्ती गंवानी पड़ी, बल्कि सरकार बैकफुट पर रही। वहीं पुलिस प्रशासनिक अमले में फेरबदल भी करना पड़ा। इस प्रकरण में एसपी, डीएम व सीएमओ नपे थे ।
पशु तस्करी में फंसे सपा नेता केसी पाण्डेय समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय कार्य समिति के सदस्य केसी पाण्डेय पशु तस्करी में फंसे। उनके चेले आशुतोष पाण्डेय का गोण्डा के एसपी नवनीत राणा ने स्टिंग आपरेशन कर डाला। केसी पाण्डेय टेप में आशुतोष पाण्डे की पैरवी करते सुने गए और आशुतोष एसपी को घूस की पेशकश करते।सरकार की फजीहत हुई। पुलिस ने उन्हें आपराधिक षडय़ंत्र के तहत नामजद किया। अंतत: गोण्डा एसपी की रवानगी करने के बाद जांच सीबीसीआईडी के सुपुर्द कर इस विवाद को ठंडा किया गया।
जमीन कब्जे में गई नटवर गोयल की लालबत्ती : लखनऊ में खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के उपाध्यक्ष जमीन पर कब्जे के विवाद में फंसे। एक दैनिक समाचार पत्र के फोटोग्राफर की पिटाई की और मामले ने तूल पकड़ लिया। मुख्यमंत्री ने मामले को गंभीरता से लिया और उनकी लालबत्ती छीनने का फैसला किया गया।उन्हें सपा ने ही सरकार बनने पर लालबत्ती से नवाजा था।
अभी पिछले ही दिनों विधुना के विधायक प्रमोद गुप्ता के बेटे का तमाचा गूंजा।मंत्री पदाधिकारी ही नहीं विधायक भी पीछे नहीं रहे। विधुना के विधायक प्रमोद गुप्ता को सत्ता नेतृत्व का खासा करीबी माना जाता है। उनके लखनऊ के एमिटी कॉलेज में पढ़ने वाले बेटे ने महिला क्लास टीचर को सरेआम तमाचा रसीद कर दिया। मामला विधानसभा और विधान परिषद में उठा। महिला टीचर ने सीएम अखिलेश यादव से मुलाकात की। अंतत: विधायक के बेटे अनुभव के खिलाफ केस दर्ज हुआ और अदालत से जमानत हो गई।
साहब सिंह सैनी : बीज प्रमाणीकरण निगम का अध्यक्ष बनने के बाद साहब सिंह सैनी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला। वर्षो से नेपथ्य में रह रहीं उनकी पहली पत्नी अवतरित हो गयीं है और देहरादून में उनके खिलाफ अदालती कार्रवाई पर उतर आयीं। साहब सिंह सैनी पर उत्तराखंड में मुकदमा भी दर्ज हो गया है।
इसके पहले भी लखनऊ के बहुचर्चित आशियाना दुराचार काण्ड में भी सपा के एक नेता के भतीजे गौरव शुक्ला भी काफी सुर्खियाँ बटोर चुके हैं ।
शौहर के बेरहम कत्ल से बेजार सीओ जियाउल हक की पत्नी परवीन आजाद बार-बार बेसुध हो जाती हैं। मुख्यमंत्री उनको ढांढस बंधाने पहुंचे और उनकी तमाम मांगें मान भी लीं लेकिन पति के हत्यारों को सजा दिलाए बगैर उन्हें चैन कहां। बार-बार बोल उठती हैं-‘राजा भैया कातिल है, कुंडा में राजा भैया की मर्जी के बिनापत्ता भी नहीं हिलता। वहां का पुलिस-प्रशासन बिका हुआ है। सब चूहे की तरह हैं।’ लंबी लड़ाई का संकेत देते हुए परवीन कहती हैं, ‘न्याय मिलने तक चुप नहीं बैठूंगी।’ जियाउल हक की पत्‍‌नी जब शौहर की लाश के सामने खड़ी बिलख रही थी तो एडीजी कानून व्यवस्था अरुण कुमार और आइजी आलोक शर्मा की नजरें झुकी हुई थी। वह साथी की मौत के लिए खुद को भी कुसूरवार मान रहे थे। दोनों अधिकारियों ने सीओ की पत्‍‌नी को न्याय का पूरा भरोसा तो दिलाया मगर दोनों इससे बाखबर हैं कि यह काम इतना आसान नहीं। दरअसल, आम आदमी पर भले ही खाकी का खौफ हो मगर सत्ता के गलियारों में बैठे लोगों के लिए वह महज एक मोहरा है। बसपा विधायक राजू पाल की हत्या का मामला हो या फिर भदोही के एक चर्चित विधायक की शान में गुस्ताखी का। रसूखवालों के आगे हर बार खाकी को घुटने टेकने पड़े हैं। पुलिस की बेचारगी की सबसे बड़ी नजीर आठ वर्ष पहले हुई बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के दौरान देखने को मिली। तत्कालीन धूमनगंज इंस्पेक्टर परशुराम सिंह ने राजू की हत्या से एक हफ्ते पहले ही उसके कत्ल की आशंका जताई थी। इसके बावजूद अधिकारियों ने किसी तरह की तत्परता नहीं दिखाई। 25 जनवरी 2005 को दिनदहाड़े राजू पाल की हत्या कर दी गई। शासन और वरिष्ठों ने इसमें अपने आप को पाक-साफ साबित करने के लिए उसी दारोगा को सस्पेंड कर दिया, जिसने राजू पाल की हत्या की आशंका जताई थी और हत्या की साजिश रचने वालों के खिलाफ ऊपर तक शिकायत की थी। भदोही के एक चर्चित विधायक की बातों की अवहेलना भी कई पुलिस अधिकारियों को खासी महंगी पड़ी थी। कुछ तो सत्ता परिवर्तन होने पर दिखे मगर बाकी इस कदर नेपथ्य में चले गए कि लोग उनका नाम तक भूल गए।
जिस तरह से आये दिन प्रदेश में क़ानून व्यवस्था की सत्ता पक्ष के लोगों द्वारा धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं वह आनेवाले समय में समाजवादी पार्टी के लिए पतन का कारण बन सकती है ।

विवेक मनचन्दा,लखनऊ

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