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कांग्रेस भ्रष्टाचार का पर्याय बन गयी है

मेरे विचार
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देश में कर्ज के बोझ तले दबे किसानों द्वारा आत्महत्या की घटनाएं कम होने का नाम ही नहीं ले रही है वहीं लेकिन कैग के खुलासे से पता चला है कि किसानों को कर्ज से मुक्त कराने की योजना में भी भारी गड़बड़ी हुई है।आने वाले दिनों में यूपीए सरकार की फिर से किरकिरी होने वाली है। 52,000 करोड़ रुपये का नया घोटाला सामने आया है। इस घोटाले में ग़रीब किसानों के नाम पर पैसों की बंदरबांट हुई है। किसाऩों के ऋण मा़फ करने वाली स्कीम में गड़बड़ी पाई गई है। इस स्कीम का फायदा उन लोगों ने उठाया, जो पात्र नहीं थे। इस स्कीम से ग़रीब किसानों को फायदा नहीं मिला। आश्चर्य इस बात का है कि इस स्कीम का सबसे ज़्यादा फायदा उन राज्यों को हुआ, जहां कांग्रेस को 2009 के लोकसभा चुनाव में ज़्यादा सीटें मिली। इस स्कीम में सबसे ज़्यादा खर्च उन राज्यों में हुआ, जहां कांग्रेस या यूपीए की सरकार है।
गौरतलब है कि संप्रग-एक की गेम चेंजर किसान कर्ज माफी योजना में भारी घोटाले का पर्दाफाश करने वाली कैग की रिपोर्ट को सरकार द्वारा सार्वजनिक करने के बाद सरकार के लिए समस्या बढ़ गई है। इस रिपोर्ट ने साफ कर दिया कि जिस स्कीम को संप्रग किसानों का हित साधने वाली अहम स्कीम बता रही थी, उसमें अरबों-खरबों रुपये की गड़बड़ियां हुई हैं।
इस स्कीम के तहत वितरित लगभग 52,500 करोड़ में से कम से कम 20 फीसद राशि के इस्तेमाल को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। पहले से ही कई घोटालों में फंसी संप्रग-दो के लिए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के बाद राजनीतिक मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।
सीएजी ने किसानों के ऋण मा़फ करने वाली स्कीम में गड़बड़ियां पाई हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कृषि ऋण के नाम पर राजनीतिक फायदा उठाया गया, क्या इस स्कीम का रिश्ता चुनाव से है, क्या इस स्कीम का फायदा ग़रीब किसानों की जगह राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने उठाया? अगर गड़बड़ियां हुई हैं तो क्या सीएजी फिर एक ऐसी रिपोर्ट पेश करेगी, जिसमें मनमोहन सिंह सरकार की करतूतों का पर्दाफाश होगा। खबर यह भी है कि सीएजी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ मिलकर इस स्कीम से फायदा उठाने वाले लोगों की तहक़ीक़ात कर रही है। फरवरी 2008 में चुनाव से पहले यूपीए सरकार ने किसानों के ऋण मा़फ करने की नीति का ऐलान किया। इस स्कीम के तहत किसानों के 70,000 करोड़ रुपये के ऋण मा़फ किए जाने थे। सरकार ने जैसे ही इस नीति की घोषणा की, किसानों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। कुछ लोगों ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताया। इस स्कीम का फायदा उन किसानों को होता, जिन्होंने बैंकों से खेती के लिए ऋण लिए थे। यह फैसला अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के अर्थशास्त्र के तर्कों से ज़्यादा एक राजनीतिक चालबाज़ी थी। 2009 में चुनाव होने थे। जबसे यूपीए की सरकार बनी, तबसे किसान परेशान थे, क्योंकि कृषि क्षेत्र में दी जाने वाली सब्सिडी में मनमोहन सिंह लगातार कटौती कर रहे थे और उन पर उद्योग जगत को ज़्यादा से ज़्यादा फायदा पहुंचाने की धुन सवार थी। चुनाव में वोट तो किसान ही देते हैं, इसलिए उनकी नाराज़गी मिटाने के लिए मनमोहन सिंह सरकार ने यह मास्टर स्ट्रोक खेला।
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पहले 2-जी घोटाले ने देश के लोगों के होश उड़ाए, फिर कॉमनवेल्थ गेम्स से पूरी दुनिया को पता चला कि बिना भ्रष्टाचार के इस देश में कोई काम नहीं हो सकता है। एक के बाद एक कई घोटाले उजागर होते गए। एक ऐसा सिलसिला शुरू हुआ, जिससे लोगों ने सरकारी घोटालों को नियति मान लिया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भ्रष्टाचार को रोकने की झूठी तसल्ली देते रहे, लेकिन उन्होंने कोई ठोस क़दम नहीं उठाया। राजनीतिक क्षेत्र में नैतिकता का पतन इस स्तर पर पहुंच गया कि मंत्री और नेता घोटाले में फंसने के बावजूद तर्क देते हैं और जब तर्क काम नहीं करता है तो धमकियां देने लगते हैं।
इस स्कीम के तहत क़रीब तीन करोड़ सत्तर लाख किसानों के ऋण सरकार ने मा़फ कर दिए। मजेदार बात यह है कि इससे कांग्रेस को जमकर फायदा हुआ। आंध्र प्रदेश में कुल संवितरण 11,000 करोड़ रुपये का हुआ। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के 33 उम्मीदवार सांसद बने। मतलब यह कि आंध्र प्रदेश में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला। इसी तरह जहां-जहां इस स्कीम को सफलतापूर्वक लागू किया गया, वहां चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत हुई। हैरान करने वाला परिणाम उत्तर प्रदेश में दिखा। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हैसियत उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बराबर हो गई। जबकि कांग्रेस के पास न तो नेता थे और न समर्थन। महाराष्ट्र में भी इस स्कीम का फायदा कांग्रेस पार्टी को हुआ। स़िर्फ इन तीनों राज्यों से कांग्रेस पार्टी ने 69 सीटों पर क़ब्ज़ा किया। सवाल यह है कि इन राज्यों में इस स्कीम का फायदा उठाने वाले लोग कौन हैं, जिन ग़रीब किसानों के लिए यह योजना बनाई गई, क्या उन्हें इसका फायदा मिला, क्या इसका फायदा उठाने वाले लोग राजनीतिक कार्यकर्ता हैं?
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लोकसभा चुनाव से पहले ऋण मा़फ करने की नीति लागू करने का मतलब सा़फ है कि सरकार की मंशा कुछ और थी। ग़रीबों को फायदा पहुंचाना तो स़िर्फ एक बहाना था। असल मक़सद इस नीति का राजनीतिक इस्तेमाल करना था। यहीं से शुरू होती है यूपीए सरकार के एक और घोटाले की दास्तां। एक ऐसा घोटाला, जिसमें पहली बार सरकारी खजाने के पैसों की राजनीतिक कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच बंदरबांट हुई। पहले अधिकारी, मंत्री, नेता एवं बड़े बिजनेसमैन या फिर उनके गठजोड़ से घोटालों को अंजाम दिया जाता था। यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान ऐसी कई योजनाएं लागू की गईं, जिनसे आम आदमी भ्रष्टाचार और घोटालों में शामिल हुआ। किसानों के ऋण मा़फ करने की स्कीम में जो घोटाला हुआ है, उसमें कई लोग शामिल हैं।
सीएजी ने किसानों के ऋण मा़फ करने वाली स्कीम में गड़बड़ियां पाई हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कृषि ऋण के नाम पर राजनीतिक फायदा उठाया गया, क्या इस स्कीम का रिश्ता चुनाव से है, क्या इस स्कीम का फायदा ग़रीब किसानों की जगह राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने उठाया? अगर गड़बड़ियां हुई हैं तो क्या सीएजी फिर एक ऐसी रिपोर्ट पेश करेगी, जिसमें मनमोहन सिंह सरकार की करतूतों का पर्दाफाश होगा।
थोड़ी सी गहराई में जाते ही पता चलता है कि इस स्कीम का राजनीतिक इस्तेमाल हुआ है। सबसे ज़्यादा तमिलनाडु में ऋण मा़फ किए गए। यहां पर डीएमके और कांग्रेस की गठबंधन सरकार थी। इसके बाद आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में इस स्कीम के तहत सबसे ज़्यादा ख़र्च हुआ। इस स्कीम के तहत ख़र्च हुई कुल रकम का 52 फीसदी हिस्सा 6 राज्यों एवं केंद्र शासित राज्यों पर ख़र्च हुआ, जहां कांग्रेस या यूपीए गठबंधन की सरकार थी। ये राज्य हैं आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, तमिलनाडु एवं चंडीगढ़। मजेदार बात यह है कि लोकसभा चुनावों में इन राज्यों से सबसे ज़्यादा सीटें कांग्रेस ने जीतीं। क्या इस स्कीम का राजनीति से कोई रिश्ता है?
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विश्वविख्यात अर्थशास्त्री हैं, लेकिन लगता है कि वह अपने ज्ञान का इस्तेमाल योजनाएं बनाने में नहीं करते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक़, 2000 से लेकर 2010 के बीच कृषि ऋण का कुल संवितरण 775 फीसदी बढ़ा है, लेकिन न तो उपज में वृद्धि हुई है और न कृषि से जुड़े बाज़ार में इज़ा़फा हुआ। सबसे हैरानी की बात यह है कि किसानों द्वारा साहूकारों से ऋण लेने में भी कोई कमी नहीं देखी गई। दूसरी तऱफ योजना आयोग यह जानकारी देता है कि भारत के 12।8 करोड़ ज़मीन मालिक किसानों में से क़रीब 8 करोड़ किसान अब भी ऋण की संस्थागत प्रणाली से बाहर हैं। इसका मतलब सा़फ है कि छोटे एवं भूमिहीन किसान, जिन्हें पैसे की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, वह ऐसी नीतियों का इस्तेमाल नहीं कर पाते। इसके अलावा यह बात भी सामने आ चुकी है कि बड़े किसान, जिनकी पहुंच बैंकों तक है, वे कृषि ऋण तो लेते हैं, लेकिन उस पैसे का उपयोग ग़ैर कृषि उद्देश्यों में करते हैं। मतलब यह कि इस अत्यधिक सब्सिडी वाले ऋण का दुरुपयोग कर रहे हैं। वे कम ब्याज पर बैंक से ऋण लेते हैं, लेकिन दूसरे बैंकों में उसी पैसे को फिक्सड डिपोजिट कर देते हैं और घर बैठे 4।5 फीसदी ब्याज उठाते हैं या फिर वह पैसा दूसरी आकर्षक वित्तीय योजनाओं में लगा देते हैं, जहां उन्हें अधिक फायदा होता है। उन्हें लगता है कि चुनाव के समय सरकार ऋण मा़फ कर देगी, इसलिए वे भुगतान नहीं करते। इन सच्चाइयों से केंद्र सरकार अवगत है, लेकिन इसके बावजूद उसने 2008 में कृषि ऋण मा़फ करने की घोषणा करके ऋण भुगतान पर गलत असर डाला। यूपीए सरकार यहीं पर नहीं रुकी, जो लोग समय पर ऋण का भुगतान करते हैं, उन्हें दो फीसदी ब्याज की भी छूट दे दी। इसका भी उल्टा असर देखने को मिला। किसानों को ऋण देने का संपूर्ण दृश्य यह है कि बैंकों से मिलने वाले कृषि ऋण का फायदा बड़े एवं अमीर किसान उठाते हैं और जो छोटे एवं ग़रीब किसान हैं, वे इन योजनाओं का फायदा नहीं उठा पाते। इस मामले में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि किसानों को ऋण देने वाले बैंकों के पास उन लोगों की एक लिस्ट है, जिन्हें वे बार-बार ऋण देते हैं। उस लिस्ट की जांच होनी चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि इस बंदरबांट में कहीं बैंक भी तो हिस्सेदार नहीं हैं।
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अगर भूमिहीन, छोटे एवं ग़रीब किसानों के ऋण मा़फ करने की नीति बनती है, तब भी सरकार की दलील को समझा जा सकता है, लेकिन अगर वह ग़रीब किसानों के नाम पर योजनाएं बनाए और अमीर किसानों को फायदा पहुंचाए तो यह स़िर्फ धोखा ही नहीं, बल्कि यह एक घोटाला है। यह घोटाला 2-जी और कोयला घोटाले से भी कहीं ज़्यादा खतरनाक है। बड़े-बड़े घोटालों में तो किसी नेता या मंत्री की साख ख़राब होती है, लेकिन जब घोटाला ज़मीनी स्तर पर फैल जाता है, जब ग़रीबों के नाम पर योजनाबद्ध तरीक़े से घोटालों को अंजाम दिया जाता है, तो आम आदमी का सरकार और प्रजातंत्र से विश्वास उठ जाता है। अगर ग़रीब किसानों को राहत देने की कोई स्कीम बनती है तो उस पर किसे आपत्ति हो सकती है, लेकिन अगर जनता के पैसों का इस्तेमाल ग़रीबों के नाम पर सरकार अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में करे तो उसका विरोध होना चाहिए। इस मामले पर जांच होनी चाहिए। सीएजी को इस स्कीम पर एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करनी चाहिए, जिससे यह पता चल सके कि इस स्कीम का फायदा उठाने वाले लोग कौन हैं। यह ज़रूरी है कि देश की जनता को पता चले कि ग़रीबों के नाम पर ख़र्च किए जाने वाले पैसों की किस तरह बंदरबांट की जाती है। चुनाव से ठीक पहले घोषणाएं किस तरह आम लोगों की जगह पार्टी के कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए की जाती हैं।
सीएजी की रिपोर्ट का क्या निष्कर्ष निकलेगा, वह शायद अब लोगों को पता है, क्योंकि सीएजी अगर सरकार को कठघरे में खड़ा करती है तो सबसे पहले यूपीए के मंत्री यह दलील देंगे कि सीएजी को सरकार की नीतियों पर कुछ बोलने का अधिकार नहीं है।
उधर, कैग की इस रिपोर्ट को चौंकाने वाली करार देते हुए भाजपा ने मामले में तत्काल सीबीआई जांच कराने की मांग की है। भाजपा के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि ऐसे पात्र किसानों का 31 मार्च 2013 तक का बकाया कर्ज भी तत्काल माफ किया जाना चाहिए जिन्हें योजना का लाभ मिलना चाहिए था लेकिन नहीं मिला। उन्होंने संसद परिसर में संवाददाताओं से कहा कि कैग की रिपोर्ट में कर्ज माफी योजना में अनियमितताएं सामने आई हैं और सरकार को इस मामले में सभी 3 .5 करोड़ खातों की सीबीआई जांच करानी चाहिए। वर्ष 2008 में शुरू की गयी कृषि ऋण माफी तथा ऋण राहत योजना की लेखा परीक्षा संबंधी कैग की आज संसद में पेश की गयी रिपोर्ट में बताया गया है कि नौ राज्यों में लेखा परीक्षा जांच में 9334 खातों में से 1257 (13.46 प्रतिशत) खाते वे थे जो कि योजना के तहत लाभ के पात्र थे लेकिन जिन्हें ऋण देने वाली संस्थाओं द्वारा पात्र किसानों की सूची तैयार करते समय शामिल नहीं किया गया। जावड़ेकर ने कहा कि कैग ने 3.5 करोड़ खातों में से केवल 90 हजार की पड़ताल की है और तब ये नतीजे निकले हैं। सभी खातों की जांच में और अधिक अनियमितताएं सामने आ सकती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस भ्रष्टाचार का पर्याय बन गयी है। राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, 2जी घोटाला, कोयला घोटाला, हेलीकॉप्टर घोटाला और अब किसानों को कर्ज माफी योजना में घोटाला सामने आया है जिसमें अनेक अपात्र लोगों ने फायदा उठाया जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ।’’
किसानों की ऋण माफी योजना में कथित अनियमितताओं को लेकर विपक्ष द्वारा सरकार पर निशाना साधे जाने के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चूककर्ताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई किए जाने का संसद में आश्वासन दिया।
प्रधानमंत्री ने यह आश्वासन राज्यसभा में उस समय दिया जब भाजपा ने किसानों की ऋण माफी योजना संबंधी कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) रिपोर्ट का जिक्र करते हुए आरोप लगाया कि यह घोटाला है।
विपक्षी सदस्यों के हंगामे पर प्रधानमंत्री ने कहा कि ऋण माफी योजना पर कैग रिपोर्ट का जिक्र किया गया है। उन्होंने कहा कि सामान्य प्रक्रिया के तहत यह मामला लोक लेखा समिति को सौंपा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर कोई अनियमितता हुई है, जैसा बताया गया है, तो वह सदन को आश्वस्त करते हैं कि हम चूककर्ताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और बीजेपी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने मामले पर सदन में चर्चा कराने की मांग की। सुषमा स्वराज ने कहा, ‘इस गड़बड़ी के सामने आने से सरकार नहीं, पूरा देश शर्मसार है। यह महज गड़बड़ी का मामला नही एक घोटाला है।’
बीजू जनता दल के भृतहरि मेहताब ने कहा कि बार-बार आगाह किए जाने के बावजूद केन्द्र सरकार ने इस महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन पर निगरानी नहीं रखी। उन्होंने कहा कि यह करोड़ों की लूट व्यवस्था और प्रशासनिक मशीनरी के ध्वस्त होने का परिणाम है।

विवेक मनचन्दा,लखनऊ

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