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जनता के लिए “भ्रष्टाचार” चुनावी मुद्दा नहीं है

मेरे विचार
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पूरा देश इस वक्त भ्रष्टाचार से त्रस्त है। निचले स्तर से लेकर शीर्ष तक भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ें मजबूत की हैं। भ्रष्टाचार को लेकर देश की छवि दुनिया में कितनी खराब है, यह इस बात से समझा जा सकता है कि बीते वर्ष हांगकांग स्थित एक प्रमुख व्यापारिक सलाहकार संस्थान ने अपने सर्वे में भारत को एशिया-प्रशांत के 16 देशों के बीच चौथा सबसे भ्रष्ट देश बताया था।
विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र यदि भ्रष्टाचार से पीड़ित है, तो अजीब लगता है। चूंकि लोकतंत्र में असली ताकत जनता के हाथों में होती है, इसलिए भारत में भी बढ़ते भ्रष्टाचार के लिए एक हद तक जनता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। मगर, यह भी सत्य है कि राजनेताओं की कारगुजारियों ने भी भ्रष्टाचार को बढ़ाने में अपनी अहम भूमिका निभाई है।
केंद्र की मनमोहन सरकार ने अपनी दूसरी पारी में चार साल पूरे कर लिए हैं। मनमोहन सिंह जब दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने जनता से कई वादे किए थे । हालांकि पिछले कुछ सालों में वादों की कम और घोटाले की ज्यादा चर्चा हुई।यूपीए 2 और भ्रष्टाचार का चोली दामन का रिश्ता रहा है। जब से यूपीए 2 सत्ता में आई है तब से ही सरकार एक के बाद एक घोटालों में फंसती जा रही है। भ्रष्टाचार में लिप्त होने की वजह से न सिर्फ सरकार और देश को जिल्लत का सामना करना पड़ा है बल्कि अपने पांच मंत्रियों से भी सरकार को हाथ धोना पड़ा है।2-जी घोटाले में दोषी पूर्व संचार मंत्री ए राजा, मामले में ही दोषी केंद्रीय कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन, कोलगेट मामले में स्टेटस रिपोर्ट बदलवाने के आरोपी कानून मंत्री अश्विनी कुमार, रेल घूसकांड मामले में रेल मंत्री पवन कुमार बंसल और कामनवेल्थ घोटाले में आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी जैसे मंत्रियों से सरकार को हाथ धोना पड़ा है। इन मंत्रियों की विदाई के साथ सरकार को फजीहत भी झेलनी पड़ी है।
हम सबको पता है कि 2 जी, सीडब्लूजी और खनन घोटालों से सरकारी खजाने को करोड़ों रुपयों का चूना लगा है। लेकिन क्या 500 -1000 रुपये के चालान से बचने के लिए ट्रैफिक पुलिस को 50 -100 रुपये घूस देने वाला शख्स, रेलवे के टीटीई को सीट के लिए घूस देने वाला यात्री और कॉलेज में एडमिशन के लिए डोनेशन के नाम पर घूस देने वाले मां-बाप दोषी नहीं हैं?
इन सभी अपराधों का स्तर अलग-अलग है, लेकिन इन सब में ‘चलता है’ का रवैया एक जैसा है। इसलिए अब सवाल उठता है- अपने देश में दिख रहे भ्रष्टाचार के लिए कौन जिम्मेदार है? हम अलग-अलग क्षेत्रों में भ्रष्टाचार देखते हैं। इनमें सरकार, शिक्षा, मीडिया, दूरसंचार, रिटेल, निर्माण और खनन जैसे तमामा अहम क्षेत्र शामिल हैं। हमारा मार्गदर्शन कौन करेगा और कौन यह बताएगा कि भ्रष्टाचार को कम और आखिर में खत्म कैसे करना है?
भारत में भ्रष्टाचार की पौध आजादी की तुरंत बाद ही कांग्रेस ने रोप दी थी। अनेक वीर स्वतंत्रता सेनानियों के प्राणों की आहुति देकर सन 1947 में भारत ने अंग्रेजों के चंगुल से शासन व्यवस्था छीनी। लेकिन, तत्कालीन कर्णधारों ने सुराज देने की जगह कुराज के बीज बो दिए। आजादी के बाद कांग्रेस के शासनकाल में ही भ्रष्टाचार का बीज अंकुरित हुआ बल्कि शनै-शनै बढ़ता भी गया। अलग-अलग समय सत्ता में रही कांग्रेस ने उस भ्रष्टाचार के पौधे को खूब खाद-पानी दिया, उसका खयाल रखा। आज वही पौधा विशाल वट वृक्ष बन गया है। उसके इस प्रिय पौधे पर जब भी कोई अंगुली उठाता है कांग्रेस उसकी खूब खिचाई करती है। बाबा रामदेव ने वर्षों से विदेश में जमा होते आ रहे कालेधन की मांग की तो कांग्रेसनीत यूपीए सरकार उन पर डंडा लेकर पिल पड़ी। दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन करके रात में सो रही महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों पर आंसू गैस के गोले छोड़े। अभिव्यक्ति के संवैधानिक अधिकार का गला घोंटा गया। बाद में इस बर्बर घटना में घायल एक महिला ने अस्पताल में दम तोड़ दिया था। जो कुछ समय पहले तक बाबा रामदेव के आश्रम में जाकर उनका आशीर्वाद लेते थे वे बाबा को ठग कहते नहीं थक रहे। वहीं कांग्रेस ने बाबा रामदेव के तमाम ट्रस्टों पर जांच बैठा दी।
अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए मजबूत लोकपाल की आवाज बुलंद की तो कांग्रेस ने उन्हें घेरना शुरू कर दिया। कांग्रेस के नेता अन्ना हजारे के साथ बदतमीजी पर उतर आए। उनका चरित्रहनन करने के लिए अमर्यादित भाषा का जमकर इस्तेमाल किया गया।
जरा अतीत पर नजर डाली जाए तो स्पष्ट होता है कि आज भ्रष्टाचार की जो विशाल इमारत खड़ी दिख रही है, उसकी नींव कांग्रेस ने अपने पहले ही शासन काल में रख दी थी।आजादी के बाद 66 वर्षों में हम सबने ही भ्रष्टाचार को पनपने का अवसर दिया है, संरक्षण दिया है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (सीपीआई) की 183 देशों की सूची में भारत भ्रष्टाचार के मामले में 95 वें नंबर पर है। स्विट्जरलैण्ड बैंकिंग एसोसिएशन की रिपोर्ट भी कहती है कि स्विस बैंकों में जमा धन के मामले में भारत सबसे आगे है। यानी विदेशों भारत का कालाधन सबसे अधिक है। कालाधन भ्रष्टाचार से ही बनाया है। आजादी के बाद से लेकर अब तक भारत में करीब 91 सौ खरब के घोटाले प्रकाश में आ चुके हैं और अभी भी नए-नए घोटालों का जन्म तेजी से होता जा रहा है।
आजाद भारत का पहला ज्ञात घोटाला सन 1947 में हुआ था।सन 1948-49 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में जीप घोटाले को उनके चहेते वी.के. कृष्णा मेनन ने अंजाम दिया। वी.के. कृष्णा मेनन उस समय लंदन में भारत के हाई कमिश्नर थे। 1948 में ही पाकिस्तान ने हमला कर दिया था। भारतीय सेना को जीपों की जरूरत आन पड़ी। जीप खरीदने की जिम्मेदारी जवाहरलाल नेहरू ने मेनन को सौंपी। मेनन ने विवादास्पद कंपनी से जरूरी औपचारिकताएं पूरी किए बिना 2000 जीप खरीदने का सौदा कर लिया। इसके लिए उन्होंने कंपनी को एक लाख 72 हजार पाउंड की राशि (80 लाख रुपए, उस समय) का भुगतान भी कर दिया। ब्रिटेन से 155 जीप की एक ही खेप पहुंची सकी थी। कृष्णा मेनन की करतूत से पर्दा उठ गया। 155 जीप में से एक भी चलने की स्थिति में नहीं थी। उस समय नाममात्र के विपक्ष की मांग पर दिखाने के लिए एक जांच कमेटी बनाई गई। लेकिन, दोषी मेनन पर कार्रवाई तो दूर बल्कि उनका प्रमोशन कर दिया गया। 1956 में वी.के. कृष्णा मेनन कैबिनेट मंत्री बना दिए गए। यहीं से भ्रष्टाचार को बल मिला। अगर कांग्रेस वाकई देश को सुशासन देना चाहती थी तो उसी समय जीप घोटाले के दोषी वीके कृष्णा मेनन पर कड़ी कार्रवाई कर देती तो शायद आज भारत में भ्रष्टाचार की यह स्थिति नहीं होती। कांग्रेस और उसके वरिष्ठ नेता इसी एक घोटाले पर नहीं रुके। कांग्रेस के नेताओं में होड़-सी लग गई घोटाले करने की। जीप घोटाले को दो साल भी नहीं बीत पाए थे कि साइकिल घोटाला 1951 में सामने आ गया। यह भ्रष्टाचार की यह काली सूची दिन-दूनी रात-चौगुनी बढ़ती गई। अब तो घोटालों में रकम का आंकड़ा करोड़ो-अरबों में पहुंच गया है। लाख रुपए के घोटाले को घोटाला ही नहीं माना जाता। सलमान खुर्शीद पर जब विकलांगों के उपयोग की सामग्री वितरण में कुछ लाख के घोटाले का आरोप लगा था तो कांग्रेस के प्रवक्ता यह कहते हुए पाए गए कि इस कदर मंत्री की औकात कम मत करो, भला मंत्री भी लाख का घोटाला करेगा क्या? यह राशि करोड़ में होती तो ही विश्वास किया जा सकता था। कांग्रेस को अपनी बची-खुची छवि बचानी है तो तत्काल भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे मंत्रियों को बर्खास्त कर देना चाहिए। वरना, यूं ही भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की बातों का क्या है, बातें तो सब करते हैं।
भ्रष्टाचार में महिलाएं भी कम नहीं हैं ।पौने दो लाख करोड़ रुपए के टेलीकॉम घोटाले में तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि की बेटी कनिमोझी भी शामिल है।उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत ने नोएडा में गलत तरीके से भूखण्ड आवंटित करने का दोषी करार देते हुए उन्हें 4 साल कैद की सजा सुनाई थी।नीरा यादव उस समय नोएडा अथॉरिटी की प्रमुख थीं।दूरसंचार विभाग की पूर्व उपमहानिदेशक रूनु घोष को आय से अधिक संपत्ति मामले में तीन वर्ष की सजा सुनाई गई।उत्तर प्रदेश की मुख्‍यमंत्री मायावती भी 175 करोड़ के ताज कॉरिडोर मामले में घोटाले की मुख्‍य आरोपी हैं।उत्तर प्रदेश कि मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती ने आम जनता कि गाढ़ी कमाई को केवल पार्कों और स्मारकों के बनाने में खर्च कर दिया और भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड तोड़कर रख दिए ।
1996 में चारा घोटाला के उजागर होने के बाद पटना उच्च न्यायालय की निगरानी पीठ के आदेश से सीबीआई ने घोटाले ने बिहार के पूर्व मुख्‍यमंत्री और उनकी पत्‍नी राबडी देवी के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने के कई मामले दर्ज किए थे।
1992 में जयललिता पर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहते हुए तमिलनाडु स्माल इंडस्ट्रीज कारपोरेशन की जमीन औने-पौने दामों में जया पब्लिकेशन को आवंटित कराने का आरोप लगा।
आज के समय में राजनीति में कोई भी ईमानदार नहीं है। जो सबको एक साथ लेकर चले वही सही राजनीतिज्ञ कहलाता है। यह बात गत दिनों वर्तमान नये केंद्रीय रेल, परिवहन व सड़क मंत्री सीपी जोशी ने को पानीपत के सेक्टर 25 के मैदान में परशुराम जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में ब्राह्मण समाज द्वारा आयोजित सभा में कही थी । भ्रष्टाचार को लेकर एक तरफ जनता सड़कों पर उतरती है बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के समर्थन में खड़ी होती है ।पर जब चुनाव आते हैं तो राजनेताओं के झूठे वादों में बहकर भ्रष्ट लोगों को चुन लेती है। अगर भ्रष्टाचार को लेकर जनता इतनी ही गंभीर होती तो तमाम घोटालों के पर्दाफाश होने के बावजूद हिमाचल प्रदेश,उत्तरांचल और कर्नाटक में कांग्रेस न जीतती ।उत्तर प्रदेश में मुलायम या मायवती की अदल-बदल कर सरकारें न बनवाती ।तमिलनाडु में करुणानिधि और जयललिता जैसे लोग अगर जीतते हैं तो जनता के वोट के चलते ।हम बार भ्रष्ट को चुनकर उसे और भ्रष्टाचार करने की छूट देते हैं ।देश में व्याप्त राजनीतिक शून्यता के कारण वर्तमान राजनीति दिग्भ्रमित होती जा रही है।पिछले दिनों कर्नाटक के चुनोवों चुनावों में तमाम घोटालों और भ्रष्टाचार के पर्दाफाश के बावजूद भी कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत प्राप्त किया है।इससे एक बात तो स्पष्ट होती है कि नेता नहीं बल्कि हम जनता ही इस भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार हैं।क्यों बार -बार हम लोग ऐसे भ्रष्ट लोगों को चुनते हैं जो भ्रष्टाचार के दोषी होते हैं।उत्तर प्रदेश हो या तमिलनाडु कमोबेश हर जगह यही स्थिति है।तमिलनाडु में भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जयललिता को सत्ता गंवानी पड़ी थी मगर दोबारा करूणानिधि को इसी मुद्दे पर सत्ता गंवानी पड़ी और जयललिता ने पुनः सत्ता में वापसी कि थी।ऐसा ही उत्तर प्रदेश में भी हुआ था जब भ्रष्टाचार और गुंडाराज के चलते 2007 में मुलायम सिंह को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था और मायावती को सत्ता प्राप्त हुई थी ।जबकि वह पहले से तमाम घोटालों में शामिल थी चाहे वह ताज कारीडोर का मामला हो या आय से अधिक संपत्ति का मामला ।
2012 में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मायावती कि सरकार चली गई मगर समाजवादी पार्टी को बहुमत मिल गया जिसे पांच साल पहले जनता ने नकार दिया था ।शायद यह हमारी मज़बूरी ही है कि हमें भ्रष्ट में से ही किसी एक को चुनना पड़ता है ।क्योंकि किसी ईमानदार के लिए तो चुनाव जीतना तो दूर कि बात है लड़ना ही नामुमकिन है।भ्रष्टाचार कि बहती गंगा में हर पार्टी हाथ धोना चाहती है कोई कम नहीं ।जिसको मौका मिला उसने जमकर भ्रष्टाचार और घोटाले किये हैं।भ्रष्टाचार के लिए सिर्फ एक ही पार्टी जिम्मेदार नहीं है कांग्रेस,हो या भाजपा ,सपा हो या बसपा ,द्रमुक हो या अन्नाद्रमुक आदि सभी पार्टियाँ भ्रष्टाचार में लिप्त हैं ,कोई किसी से कम नहीं है ।कर्नाटक में जब भाजपा ने पहली बार सरकार बनाई थी तो उस पर भी भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगे थे ।मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने रेड्डी बंधुओं के साथ मिलकर राज्य में भ्रष्टाचार की सारी सीमायें लांघ दी थी ।भाजपा के एक पूर्व अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को भ्रष्टाचार के चलते जेल की हवा खानी पड़ रही है तो हाल ही में पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी को भ्रष्टाचार के चलते अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था ।परन्तु जनता के सामने कोई विकल्प न होने के कारण ही कभी कोई तो कभी कोई लूटता है।जब तक जनता इस भ्रष्टाचार के विरोध में खुलकर सामने नहीं आएगी तब तक भ्रष्टाचार को ख़त्म करना मुश्किल ही बल्कि असंभव है ।

विवेक मनचन्दा,लखनऊ

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