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गुजरात के सीएम नरेन्द्र मोदी को अगले लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाए जाने और पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के इस्तीफे के बाद आया ‘भूचाल’ फिलहाल थोड़ा शांत जरूर हो गया है, परंतु मोदी के मुद्दे पर भाजपा के रिश्ते को लेकर जनता दल (युनाइटेड) ने मंथन शुरू कर दिया है।
माना जा रहा है कि जेडीयू और भाजपा के रिश्ते अब कुछ दिनों के रह गए हैं। मोदी को लेकर उनके घोर विरोधी माने जाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अब तक मुंह नहीं खोला है, परंतु दोनों दलों के कई नेता आमने-सामने नजर आ रहे हैं।
अपने राज्य में भले ही उनकी किरकिरी हुई लेकिन दिल्ली के सियासी घमासान में नीतीश भाजपा के लिए किरकिरी का सबब बने हुए हैं। बैठकों के कई दौर के बाद जेडीयू ने भाजपा को मोदी पर रुख़ साफ करने के लिए कहा है। दोनों पार्टियों के बीच कशीदगी का आलम ये है कि बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी सरकारी फाइलों पर दस्तखत करना बंद कर दिया है।
नरेंद्र मोदी के मुद्दे पर भाजपा संकट से उबरी तो अब एनडीए मुश्किल में है। 17 साल से साथ रही जदयू एनडीए छोड़ने की तैयारी में है। जदयू के प्रमुख नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और शरद यादव बीजेपी के शीर्ष नेताओं से लगातार संपर्क में हैं, लेकिन लगता है कि बीजेपी के शीर्ष नेताओं की ‘मान मनौव्वल’ भी काम नहीं आ रही है। कहा तो जा रहा है कि जदयू ने फैसला ले लिया है। बस घोषणा बाकी है जो 15 जून से पहले हो सकती है।
भाजपा में ‘आडवाणी-मोदी विवाद’ का असर अब एनडीए की एकता पर पड़ना शुरू हो गया। गठबंधन के प्रमुख घटक दल जदयू ने अपनी राह अलग चुनने का लगभग फैसला कर लिया है। बस, इसकी औपचारिक घोषणा होना बाकी है। इसके लिए बुधवार को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की यहां एक बैठक होने वाली है जिसमें भाजपा से संबंधों को लेकर नए सिरे से विचार किए जाने की संभावना है।इस बीच जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि अगर बिहार को पिछड़े राज्य का दर्जा दिया जाता है तो कांग्रेस के समर्थन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।रंजन ने कहा कि राजनीति में सभी संभावनाएं खुली होती है। फिलहाल हम एनडीए का हिस्सा हैं। हमारी पहली प्राथमिकता गठबंधन पर फैसले को लेकर है।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा में बड़ी जिम्मेदारी मिलने से नीतीश कुमार नाखुश हैं। नीतीश को ऐसा लग रहा है कि मोदी को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के बाद भाजपा देर-सबेर उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित कर सकती है। ऐसे में पार्टी अपना रुख पहले ही स्पष्ट देना चाहती है। ध्यान रहे कि नीतीश मोदी को लेकर पहले ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुके हैं।
मोदी से नाराजगी को लेकर आडवाणी के इस्तीफे के बाद नीतीश कुमार, पार्टी अध्यक्ष शरद यादव व महासचिव केसी त्यागी के बयानों से इस बात के साफ संकेत मिले हैं कि जदयू अब एनडीए से अलग होने का मन बना चुकी है।
2014 की जंग जीतने के लिए एनडीए एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है लेकिन एनडीए में दरार ऐसी कि कांग्रेस समेत दूसरी पार्टियों को कुछ भी कहने करने की जरूरत नहीं। नरेंद्र मोदी को कमान सौंपने के बाद जेडीयू के तेवर फिर भी उतने तल्ख नहीं हुए थे लेकिन आडवाणी के मोदी विरोध ने उन्हें महाराजगंज का गम मिटाने और हमले का नया मौका दे दिया।
नीतीश गठबंधन पर गरम हो रहे हैं लेकिन भाजपा के अध्यक्ष मुलायम हुए जा रहे हैं। राजनाथ सिंह गठबंधन बचाने की कोशिश में दुबले हुए जा रहे हैं।सवाल है कि ये दोस्ती का कौन-सा फॉर्मेट है जिसमें भरोसे की जगह हर कहीं अविश्वास ही है। हालांकि नीतीश के उलट हमेशा की तरह शरद यादव के तेवर थोड़े नरम जरूर हैं।लेकिन सवाल है कि क्या एक नाम को लेकर दोनों पार्टियों के लिए 17 साल की दोस्ती को खत्म करना जायज है।
हालाँकि अब भाजपा से जारी खींचतान में जेडीयू के तेवर फिलहाल नरम पड़ते दिख रहे हैं। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने कहा कि उनकी पार्टी ने भाजपा को पीएम का कैंडिडेट घोषित करने के लिए दो दिनों का अल्टिमेटम नहीं दिया है। उन्होंने पार्टी नेताओं को बयान देने में संयम बरतने की नसीहत देते हुए कहा कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में गठबंधन पर फैसला लिया जाएगा।
सवाल ये भी है कि अहं की ऐसी लड़ाई के बाद आखिर जनता कैसे एनडीए पर भरोसा जताएगी।बिहार में जनता ने बीजेपी- जेडीयू गठबंधन को जनादेश दिया लेकिन दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे है। दोनों ही पार्टियों को पता है कि गठबंधन टूटने का खामियाजा दोनों को उठाना पड़ेगा।लोकतंत्र में अंतिम फैसला जनता के हाथों में होता है। लेकिन फिलहाल भाजपा जेडीयू के बीच की तल्खी बताती है कि इन्हें इस बात में कुछ खास भरोसा नहीं है।वहीं शिवसेना ने कहा है कि इस मुद्दे पर एनडीए के सभी दलों को बैठक कर रणनीति जल्द साफ करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बाला साहेब ठाकरे ने सुषमा स्वराज को पीएम पद के लिए आशीर्वाद दिया था लेकिन उस वक्त मोदी का नाम नहीं चल रहा था।
2014 के आम चुनावों से पहले बीजेपी के अंदर जारी खींचतान अध्यक्ष राजनाथ सिंह के लाख दबाने के बाद भी रह-रहकर सामने आ रही है।
एनडीए से जेडीयू को बाहर जाने से रोकने के लिए फिलहाल जिस फार्मूले पर काम चल रहा है, उसके मुताबिक सबसे पहले 2 दिन में पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने के जेडीयू के कथित अल्टिमेटम की बात को शरद यादव नकारेंगे।
भाजपा नेताओं और शरद यादव के बीच तीन बातों पर चर्चा हुई है।जेडीयू की कार्यकारिणी में यह प्रस्ताव आ सकता है, ‘जिस दिन भी भाजपा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करेगी, हम एनडीए से अलग हो जाएंगे।’ यह प्रस्ताव पारित होने से एनडीए में संभावित टूट को कम-से-कम कुछ दिनों के लिए टाला जा सकता है। दोनों पक्षों के नेताओं को लगता है कि मोहलत मिलने के बाद आराम से रणनीति बनाई जा सकती है।
बयानबाजियों के इस दौर में अब तेवर दोनों ओर के सख्त हैं। भाजपा के भी और जेडीयू के भी। और वक़्त बताता है कि सख्त तेवर से सियासत बदलती कम है, बिगड़ती ज़्यादा है।
भाजपा को अब इस दर्द का एहसास ज़्यादा होगा, क्योंकि पीएम उसी को बनाना है और इसके लिए पैंतरे भी वही दिखा रही। अब सियासत के रंगमंच पर देखना ये है कि तलाक की ये धमकियां बस धमकियां भर हैं या फिर आने वाले दिनों में कोई नया गुल भी खिलने वाला है।
कहने वाले कहते रहें कि हिन्दुस्तान में तीसरा मोर्चा नहीं चल सकता। कहने वाले कहते रहें कि तीसरा मोर्चा कभी स्थायी नहीं होगा। लेकिन देश में जब भी सत्ता का समीकरण बिगड़ता है, केंद्र और राज्यों की राजनीति में उथल-पुथल शुरू होती है, चर्चा में सबसे पहले थर्ड फ्रंट ही आता है। एक बार फिर भाजपा में मोदी राज कायम होने से एनडीए का वजूद खतरे में आया और तीसरे मोर्चे की हवा ने जोर पकड़ ली।
तीसरे मोर्चे की हवा बुलंद करने में अगुवाई कर रही ममता बनर्जी को जैसे ही लगा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहयोगी भाजपा से दामन छुड़ाने के लिए कसमसा रहे हैं, उन्होंने तीसरे मोर्चे के लिए दामन फैला दिया।नीतीश कुमार ने खुद भी ममता बनर्जी को फोन किया और तीसरे मोर्चे को जीवनदान देने की कोशिश के लिए बधाई दी।ममता बनर्जी ने कबूल किया कि वो तीसरे मोर्चे के लिए ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के भी संपर्क में हैं। हालांकि नवीन पटनायक कहते हैं कि अभी तीसरे मोर्चे की परिकल्पना करना जल्दबाजी है।
नीतीश की तर्ज पर नवीन पटनायक ने भी दिल्ली में दम दिखाया। विशाल स्वाभिमान रैली कर ओडिशा को विशेष राज्य का दर्जा देने के बात की और इसी दौरान कहा कि अभी देखते हैं कि तीसरे मोर्चे की हवा कितना रंग पकड़ती है। नवीन पटनायक ‘वेट एंड वॉच’ की नीति अपना रहे हैं। लेकिन एक बार ममता बनर्जी को धोखा दे चुकी समाजवादी पार्टी ने नीतीश कुमार को तीसरे मोर्चे का आमंत्रण देने में देरी नहीं की।
हालाँकि तीसरा मोर्चा अभी सिर्फ हवा में ही है, लेकिन कांग्रेस के पसीने छूटने लगे हैं। कांग्रेस और एनसीपी ने तीसरे मोर्चे को ‘खयाली पुलाव’ कहा है। थर्ड फ्रंट अपने बल-बूते पर सरकार नहीं बना सकती। ऐसी बात केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने महाराष्ट्र के सांगली में मीडिया के साथ बातचीत में कही।पवार ने कहा कि तीसरा मोर्चा कितनी भी कोशिश करे, तो भी अपने बूते पर सरकार नहीं बना सकती। उसे किसी ना किसी राष्ट्रीय पार्टी की मदद लेने की जरूरत पड़ेगी ही। पवार ने यह भी कहा कि यूपीए या एनडीए के लिए भी प्रादेशिक पार्टियों- जैसे डीएमके,टीएमसी को साथ लिये बगैर सरकार बनाना मुश्किल है।
भाजपा को भी यह अच्छी तरह पता है कि देश में इस समय सिर्फ नरेन्द्र मोदी की ही हवा चल रही है और अगर भाजपा ने सहयोगी पार्टियों को साथ लेने के चक्कर में प्रधानमंत्री पद के किसी और का नाम उछाला तो उसे लेने के देने भी पड़ सकते हैं।क्योंकि यह तो तय है कि आम जनता अब आडवाणी या किसी और के नाम पर भाजपा को वोट तो नहीं ही देगी । भाजपा को चाहिए कि वह प्रधानमंत्री पद के लिए नरेन्द्र मोदी कि सिवा किसी और कि दावेदारी पेश न करे ।जिसको नरेन्द्र मोदी के नाम पर गठबंधन में रहना हो रहे वरना गठबंधन से बाहर निकल जाए ।आगामी लोकसभा चुनावों के दौरान अभी कई गठबंधन टूटेंगे और नये बनेंगे।तमाम नेता अपना पाला भी बदलेंगे ।मगर जनता को इस बार सोच समझकर फैसला करना होगा।अगर मुलायम ,मायावती ,या ममता जैसे मौकापरस्त लोगों की सरकार बनाने में जरुरत पड़ेगी तो इसका खामियाजा जनता को ही भुगतना होगा।कई राजनीतिक दलों की निष्ठाएं भी समय के अनुसार बदलेंगी ।अतः इस बार जनता को ऐसे धोखेबाज नेताओं और पार्टियों से बचकर रहना होगा।
विवेक मनचन्दा,लखनऊ
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