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प्राकृतिक आपदाएं भ्रष्ट्र तंत्र के बेशर्म नेताओं, अफसरों, कारिंदों के लिए मुनाफा कमाने का अवसर

मेरे विचार
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उत्तराखंड में कुदरत के कहर से मरने वालों की तादाद बढ़कर 207 हो गई है।यह आधिकारिक आंकड़ा है, जबकि मरने वालों की तादाद कई गुना होने की आशंका है।अनुमान लगाया जा रहा कि कुदरत कि इस मर में दस हजार से ज्यादा लोगों कि जाने गई हैं। हरिद्वार में गंगा में 40 लोगों के शव मिले हैं। सेना ने अभी तक करीब 55 हजार लोगों को बचाया है, जबकि 50 हजार से करीब लोग अभी भी फंसे हुए हैं। रुद्रप्रयाग में करीब 22 हजार, चमोली में 5 हजार और उत्तरकाशी में 10 हजार लोग फंसे हैं। इस तबाही में उत्तराखंड में 21 पुल टूटे हैं, जबकि सैकड़ों घर जमींदोज हुए हैं।
इस तबाही ने कई परिवारों को ऐसा जख्म दिया है, जो शायद ही ताउम्र भरे। लोग अपने परिवार के साथ चार धाम की यात्रा पर गए थे, लेकिन ऐसे खुशकिस्मत लोग कम ही हैं जो सपरिवार वहां से सकुशल लौट पाए हैं।कई परिवारों ने अपने अजीजों को खोया है। इस भीषण तबाही से जो लोग भी बच गए हैं वे खुद को भाग्यशाली मान रहे हैं, लेकिन अपनी आंखों के सामने अपनों को खोने वालों की पीड़ा ऐसी है कि सुनने पर किसी का भी कलेजा मुंह को आ जाए।
उत्‍तराखंड में मची तबाही के बारे में जो खबरें आ रही हैं, वास्‍तविक स्थिति उससे कहीं भयंकर लगती है। केदारघाटी की आपदा के बाद जहां एक ओर अपनी पीड़ा को भुलाकर दूसरों की मदद करने की कहानियां आ रही हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसी सूचनाएं आ रही हैं कि जिस पर यकीन करना भी मुश्किल हो रहा है। कुछ लोगों ने केदारनाथ मंदिर में भी लूटपाट की। मूर्तियों के जेवर-गहने और दानपात्र से पैसे भी निकाले गए। यही नहीं, कुछ लोगों को महिलाओं के शवों से भी जेवर-गहने उतारते देखा गया।केदारनाथ धाम परिसर में आई दैवी आपदा में फंसे श्रद्धालुओं पर नेपाली बदमाशों ने हमला कर दिया। वे उनके सामान और पैसे लूट ले गए और महिलाओं की आबरू पर भी हमला बोला। वहां फंसे लोग अपने परिजनों से यह बात बताते समय रो पड़े।
आपदा से बचने को पहाड़ी जंगलों में छिपे बदमाशों ने उनपर हमला कर दिया। नुकीले औजारों से लैस उन बदमाशों की संख्या 50 में थी। श्रद्धालुओं ने बताया कि वहां बदमाशों ने कई महिलाओं और लड़कियों के जेवरात लूट लिए। आधा दर्जन महिलाओं को बदमाश जंगल में खींच ले गए और उनकी आबरू पर हमला किया। इनमें से कुछ का तो पता ही नहीं चला। क्षेत्र में जो लोग फंसे, वे जीवित तो रहे, लेकिन भूख प्यास से बेहाल।
कोई अपने मां-बाप, कोई भाई-बहनों को तो कोई अपने बच्चों को ढूंढ रहा है। परिजनों की कोई खबर नहीं, हर जगह से निराशा हाथ लग रही है। पल-पल बढ़ता इंतजार उम्मीदों की डोर को और कमजोर कर रहा है। बचाव के दावे जो भी हों मगर, चार दिन से लापता परिजनों की चिंता उन्हें ढूंढ रही आंखों व जुबान पर दर्द बनकर उभर रही है।
जौलीग्रांट हवाई अड्डे के बाहर का नजारा विचलित कर देने वाला था। सैकड़ों लोग यहां सिर्फ इसलिए पहुंचे थे कि उन्हें किसी तरह यात्र मार्ग पर फंसे अपने परिजनों की कुशलक्षेम मिल सके। मगर, इसे विडंबना ही कहेंगे कि तीन दिन बीत जाने के बाद भी प्रशासन को कोई ठोस जवाब देते नहीं बन रहा। गत वर्ष भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं के आगे सरकारी तंत्र न केवल निकम्मा और नाकारा साबित हुआ बल्कि यह भी प्रमाणित हो गया कि सरकारी तंत्र की रुचि सिर्फ आपदा राहत को चट करने में है और जनता को अल्पकालिक या दीर्घकालिक राहत पहुंचाने में इस तंत्र की कोई दिलचस्पी नहीं है। 21 वीं सदी के अत्याधुनिक कालखंड में भी यह उत्तराखंड में ही संभव है कि बरसात के लगभग छह माह बाद तक भी उत्तराखंड के अधिकांश मोटर मार्ग चालू नहीं हो पाए।
देवभूमि में आए महाप्रलय को लेकर जो खबरें आ रही हैं, वो दिल दहलाने वाली हैं। जो लोग फोन पर रो-रोकर अपनी दास्तां सुना रहे हैं, वो कलेजा चीरने वाली हैं। तीर्थयात्रियों के परिजन जो बाइट्स दे रहें हैं, वो अपनी सरकारों पर शर्म और गुस्सा ला देता है। फंसे तीर्थयात्री के एक परिजन ने जो बयां किया उस पर कुछ कहते नहीं बन रहा। उसने बताया कि महा-आपदा के समय प्राइवेट हैलिकॉप्टर कंपनियां धंधे पर उतर गई हैं, ठीक सरकार की नाक के नीचे। रेट है एक आदमी को हैलिकॉप्टर से बचाने का दो लाख रुपये। दूसरे ने बताया कि कैसे एक समूह ने आपस में मिलकर करीब 20 लाख रुपये जुटाएं और खुद को हैलिकॉप्टर के जरिए बचा पाए।एक और परिजन ने बताया कि करीब 4 हजार तीर्थयात्रियों के लिए खाने के 50 पैकेट गिराए गए। जिससे वहां भगदड़ मच गई और बूढ़े-बच्चे घायल हो गए। किसी को खाने को कुछ नहीं मिल पाया।एक तीर्थयात्री ने आपदा स्थल की जो हकीकत बयां कि वो दिल दहलाने वाली थी। उसने बताया कि स्थानीय लोगों ने वहां लूटपाट शुरु कर दी है। लाशों के शरीर से गहनें, पर्स, मोबाइल फोन, घड़ियां निकाली जा रहीं हैं। जो घायल हैं, उन पर हमला कर उन्हें लूटा जा रहा है।
इस महा-आपदा का एक और घिनौना पहलू है। फंसें लोगों ने जो सुना, या जो देखा उस पर उन लोगों के बयानों को नकारा नहीं जा सकता। फंसे परिजनों का कहना है कि ये बातें हो रही हैं कि अब चूकिं उत्तराखंड में सबकुछ नष्ट हो गया है, ऐसे में जल्दी ही हजारों करोड़ रुपये के ठेके निकलेंगे। जिसमें उन सड़कों को बनाने का ठेका होगा, जो इस महाप्रलय में पूरी तरह बह गई हैं। सरकारी सूत्रों की मानें तो अब तक 650 सड़कों के पूरी तरह से नष्ट हो जाने की खबर है। इसी तरह उन 38 पुलों को भी बनाने का ठेका होगा, जो इस महा-आपदा में बह गए हैं। इसके अलावा तमाम सरकारी भवनों को या तो फिर से बनवाया जाएगा या उनकी मरम्मत करवाई जाएगी। इसके अलावा टेलिफोन लाइन्स को फिर से बिछाना होगा या उनकी मरम्मत करवानी होगी। कुछ ऐसा ही बिजली विभाग को करना है। मतलब गुस्साएं लोगों की मानें तो ये महा-आपदा दरअसल भ्रष्ट्र नेताओं, अफसरों और ठेकेदारों के लिए हजारों करोड़ का मुनाफा कमाने का एक बेहतरीन मौका साबित होगा।
तमिलनाडु में आई सुनामी हो या उड़ीसा में आया चक्रवात, हमेशा से कहा जाता रहा कि प्राकृतिक आपदाएं भ्रष्ट्र तंत्र के बेशर्म नेताओं, अफसरों, कारिंदों के लिए मुनाफा कमाने का अवसर देती हैं, फिर उत्तराखंड-केदारनाथ तबाही के बाद ऐसा नहीं होगा, हम कैसे कहें? क्योंकि हम हिंदुस्तानी एक बात पर तो एकमत हो जाते हैं कि हमारा सरकारी तंत्र भ्रष्ट्र है।

विवेक मनचन्दा,लखनऊ

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