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यह महंगाई कहां तक जाएगी?

मेरे विचार
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आज बेतहाशा बढ़ रही महंगाई के कोप से त्रस्त से देश का आम आदमी कैसे गुजर-बसर करे? यह महंगाई कहां तक जाएगी? क्या सरकार महंगाई रोकना नहीं चाहती? क्या सरकार का आम आदमी के दुख-तकलीफ से कुछ लेना-देना नहीं है?
सब्जियों की बढ़ती कीमत का आखिर जिम्मेदार कौन है, कौन है जो महंगाई बढ़ाने की साजिश रच रहा है। आखिर वो कौन है जिसके सामने केंद्र और राज्य सरकारें भी मजबूर हैं। सरकारें मान रही हैं कि जमाखोरी हो रही है। लेकिन सब जानते बूझते भी सरकार इसपर अब तक रोक लगाने के लिए नाकाम है।
इधर काफी समय से आर्थिक मोर्चे पर कोई एक अच्छी खबर अपने पीछे कम से कम दो बुरी खबरें लिए हुए आती है। आरबीआई का चेयरमैन पद रघुराम राजन के हाथ में जाने के साथ ही डॉलर के मुकाबले रुपये का गिरना थम गया था और लगने लगा था कि यहां से आगे बुरी खबरों का सिलसिला रुकेगा नहीं तो धीमा जरूर पड़ जाएगा। लेकिन बीते सोमवार को सितंबर के लिए आए मुद्रास्फीति के आंकड़े कुछ और ही इशारा करते हैं। ये पिछले सात महीनों में सबसे ज्यादा बुरे हैं। इसके तीन-चार दिन पहले जारी की गई अगस्त महीने की औद्योगिक विकास दर खुद में बदहाली का नमूना पेश कर रही थी। पिछले साल के मुकाबले सिर्फ 0.6 प्रतिशत की वृद्धि। जाहिर है, औद्योगिक उत्पादन में इस नाम मात्र की बढ़ोतरी से न रोजगार बढ़ने की कोई संभावना है, न पहले से काम कर रहे लोगों की तनख्वाहें बढ़ने की। यानी मांग बढ़ने से पैदा होने वाली मुद्रास्फीति जैसा तो कुछ यहां है ही नहीं। इस फेस्टिव सीजन में बाजारों का हाल देखने के बाद तो इस आंकड़े की जरूरत भी नहीं रह जाती। इसके बावजूद मुद्रास्फीति अगर सात महीनों का रिकॉर्ड तोड़ रही है तो इसका मतलब बिल्कुल साफ है कि यह सप्लाई साइड इन्फ्लेशन, यानी आपूर्ति में कमी से पैदा होने वाली मुद्रास्फीति है।
प्याज की कीमत और सियासत का नाता पुराना है। 15 साल पहले दिल्ली में महंगे प्याज ने बीजेपी सरकार को वोट के आंसू रुलाए थे। तब से अब तक बीजेपी दिल्ली की गद्दी का सपना ही देख रही है। ऐसे में प्याज समेत दूसरी सब्जियों के दाम में लगी आग बीजेपी के सपने को साकार भी कर सकती है। यही वजह है कि प्याज की महंगाई पर सियासी घमासान चरम पर है और मौका देख बीजेपी ने पूरी तैयारी के साथ केंद्र सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है।
लेकिन खाद्य मंत्री के वी थॉमस का कहना है कि किसान सब्जियों की जमाखोरी कर रहे हैं जिसके चलते दाम बढ़ रहे हैं। तो केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने कहा कि उत्पादन में कोई कमी नहीं है, जमाखोरों की वजह से प्याज के दाम आसमान छू रहे हैं।
पिछले एक साल में देखें तो फलों और सब्जियों के दामों में सौ प्रतिशत से भी अधिक की वृध्दि हुई है। जो सब्जियां पहले किलो के भाव बेची जाती थीं उनके भाव दुकान दार अब पाव में बताते हैं। प्याज, आलू, टमाटर, गोभी, गाजर, बैंगन, मूली, मटर आदि सभी सब्जियां पिछले एक वर्ष में दो गुने से भी अधिक हो गई हैं।
इसके पीछे व्यापारियों के अपने अपने तर्क हैं, लेकिन एक सत्य यह भी है कि थोक और खुदरा बाजार में अक्सर तालमेल की कमी देखने को मिलती रही है।
राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ के चेयरमैन वीरेंद्र सिंह ने कहा कि ये महंगाई बनावटी है। वीरेंद्र सिंह के मुताबिक प्याज और आलू के बड़े कारोबारियों ने खेतों में खड़ी फसल ही खरीद ली है, और किसानों को हिदायत दी है कि वो फसल को उनके आदेश के बिना बाजार में नहीं उतारें। इस वजह से ही प्याज जहां 70 से 90 रुपये किलो तक बिक रहा है वहीं आलू 30 से 40 रुपये किलो। हरी सब्जियों और टमाटर का भी यही हाल है। जाहिर है कि इतनी महंगाई पर सियासी हलचल तो मचेगी ही मचेगी।
भारत विश्व शक्ति बनाकर उभरने का दावा कर रहा है। लेकिन भारत की जमीनी हकीकत यह है कि हर चौथा व्यक्ति भूखा है। उसके पास पेट भरने के लिए अनाज का दाना नहीं है। ऊपर से महंगाई की मार ने आम आदमी का जीना दूभर कर रखा है। आज जिस रफ्तार से महंगाई बढ़ रही है, वह देश के लिए बहुत त्रासदी दायक स्थिति है। भारत में भूख और अनाज की उपलब्धता पर एक गैर-सरकारी रिपोर्ट पर गौर करें तो आबादी के हिसाब से दुनिया के सबसे बड़े देश में तकरीबन 21 करोड़ से अधिक जनसंख्या को भरपेट भोजन नहीं मिल पाता है।
सरकार के मुताबिक प्याज की नई फसल 4-5 दिनों में बाजार में आ जाएगी, इसके बाद दाम में कमी आने की संभावना है। वहीं मौजूदा हालात से निपटने के लिए केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने 25 अक्टूबर को प्याज पैदा करने वाले राज्यों की बैठक बुलाई है। अब देखना ये है कि प्याज के दाम सियासत में किसके आंसू निकालते हैं।
विपक्ष के बिखराव और खराब सियासी हालात ने कमरतोड़ महंगाई के प्रश्न पर जनमानस के रोष की अभिव्यक्ति को अत्यंत असहज कर दिया है, अन्यथा अपनी माली हालत को लेकर आम आदमी के अंतस्थल में जबरदस्त ज्वालामुखी धधक रहा है। अमीर तबके के और अधिक अमीर हो जाने की अंतहीन लिप्सा की खातिर आम आदमी को निचोड़ा जा रहा है।
आसमान छूती महंगाई, हर बीस से पच्चीस दिन में पेट्रोल के बढ़ते दाम, आंखें तरेरती सब्जियों की कीमत और हर साल बच्चों की बढ़ती फीस।दूध कम्पनियाँ दो महीने में दो-दो बार दाम बढ़ा रही हैं ,पेट्रोल ,डीजल ,और रसोई गैस के दाम भी आये दिन बढ़ते रहते हैं। दूध कम्पनियाँ गर्मी के मौसम में उत्पादन कम होने का बहाना बनाकर दाम बढ़ाती हैं पर सर्दियों के मौसम में अगर उत्पादन ज्यादा होता है तब भी दाम कम नहीं करती हैं। बाजार में टूथपेस्ट ,शैम्पू ,से लेकर साबुन तेल के दाम भी आये दिन बढ़ते ही जा रहे हैं। इस महंगाई ने जहां आम आदमी की कमर तोड़ दी है, वहीं उसके सपनों और ख्वाहिशों को भी उनसे दूर कर दिया है।
सरकार महंगाई बढ़ने के लिए आये दिन नए नए तर्क देती है कि वैश्विक स्तर पर महंगाई की समस्या है, कभी बारिश नहीं होने से महंगाई बढ़ गई तो कभी बारिश होने से महंगाई बढ़ गई। अब प्याज सौ रूपये प्रति किलो तक पह्नुच चुका है तो इसके लिए फैलिन तूफ़ान को जिम्मेदार बता रही है।
सरकार सालों से दावा कर रही है कि मूल्यवृद्धि पर काबू पा लिया जाएगा किंतु नतीजा एकदम शून्य रहा। अधिक मांग का दबाव न होने एवं फसलों के भरपूर होने के बावजूद कीमतों की उड़ान क्यों जारी रही है? वायदा बाजार बाकायदा पल्लवित हो रहा है। काले बाजार और काले अघोषित गोदामों में किसान को चावल, चीनी, दाल, गेहूं आदि के जखीरे को दबाकर बाजार में चालू आपूर्ति कम कर दी गई। कुछ अनचाहे अधमने सरकारी छापों में ही गोदामों में बाकायदा दबा पड़ा विशाल भंडार दिखाई दे गया। राजकाज और बाजार की मिलीभगत ने अब ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि राज्य व्यवस्था और बाजार के बीच फर्क महज औपचारिकता ही बन कर रह गया है। काली राजनीति का काले धंधे के साथ अवैध समीकरण भारत की जम्हूरियत और राज व्यवस्था का खास चेहरा बन गए हैं। वायदा बाजारों के चलते खाद्य पदार्थों की कीमतें कम नहीं हो पा रही हैं, क्योंकि कीमतें कम होने से बिचौलियों और कृषि कंपनियों को घाटा हो सकता है। हमारे देश में इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि एक तरफ गोदामों में अनाज सड़ रहा है और दूसरी तरफ लोग भुखमरी का शिकार हो रहे हैं। बिचौलिए मालामाल हो रहे हैं और किसान बदहाल हैं।
सरकार खामोश है उसे पता है कि महीने-दो महीने में तो जनता को महंगाई की आदत पड़ ही जाएगी। ‘कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ’ का नारा देकर सत्ता का सुख दोबारा भोग रही कांग्रेस पार्टी का एजेंडा तो साफ है कि तुम मुझे सत्ता दो मैं महंगाई का इतना बोझ दूंगी कि तुम्हारी कमर झुकी ही रहे।देश की गरीब जनता के सामने तो अब दो जून की रोटी का सवाल मुंह बाए खड़ा हो गया है।
विवेक मनचन्दा ,लखनऊ

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