Menu
blogid : 13858 postid : 655423

जनता के विश्वास को आघात

मेरे विचार
मेरे विचार
  • 153 Posts
  • 226 Comments

तहलका पत्रिका के संपादक तरुण तेजपाल पर यौन शोषण और ‘आप’ के कुछ नेताओं पर बिना रसीद के नगदी लेने के आरोप से आम आदमी को गहरा सदमा पहुंचा है। इन दोनों घटनाओं का भले ही आपस में कोई मेल न हो, पर ये एक समान सवाल खड़े करती हैं। जिन लोगों या संस्थाओं से साधारण आदमी की अपेक्षाएं जुड़ी रहती हैं, वे अगर खुद ही मूल्यहीन होती या ध्वस्त होती नजर आती हैं तो निराशा बढ़ती है। न्याय के पक्ष में आवाज उठाने वाले स्वयं कठघरे में खड़े होकर अचानक अपनी ज्यादातर पहलकदमियों पर संदेह पैदा कर देते हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि थोड़ी रोशनी की उम्मीद लेकर जनता जाए तो जाए कहां? तरुण तेजपाल और उनके सहयोगियों ने पत्रकारिता को एक नया मुहावरा दिया था। अब, जबकि एक घिनौने कृत्य में तेजपाल के लिप्त होने की बात सामने आई है तो लोगों का विश्वास चरमरा गया है।ठीक यही प्रश्न आम आदमी पार्टी के संदर्भ में भी उठता है। यह अन्ना आंदोलन से निकली हुई पार्टी है। एक समय लोगों को उम्मीद थी कि यह आंदोलन देश में एक व्यापक बदलाव लाएगा। लोगों ने उस आंदोलन के मंच पर किसी भी राजनीतिक दल के नुमांइदों को चढ़ने तक नहीं दिया। जनता की अपेक्षा थी कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के नेता उसकी समस्याओं को उठाएंगे और भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक नैतिक युद्ध लड़ेंगे।
एक हद तक यह काम राजनीतिक दल बनाकर भी किया जा सकता है, लेकिन ‘आप’ को समझना होगा कि और दलों की तरह कोई भी हथकंडा अपनाकर चुनाव जीतना और सरकार बना लेना उसका मकसद नहीं हो सकता। जनता नई ताकतों से एक नई राजनीतिक संस्कृति की अपेक्षा करती है। अगर उसके नेता भी दूसरे नेताओं जैसा ही व्यवहार करेंगे तो लोग उसे अपना समर्थन क्यों देंगे? जो भी लोग समाज के भले के लिए काम करना चाहते हैं उन्हें अपनी साफ नीयत का भरोसा देना ही होगा। मीडिया सरकार डॉट कॉम की ओर से कराए गए स्टिंग ऑपरेशन में आप पार्टी के 9 सदस्यों पर अवैध चंदे की उगाही का आरोप लगा है। जिसमें चुनावी मैदान में खड़ी शाजिया इल्मी भी शामिल हैं। स्टिंग ऑपरेशन में साफ हो रहा है कि शाजिया ने चंदे के लिए औऱ धरना के लिए किसी महिला से पैसे की मांग कर रही हैं जिसे वह महिला मान गयी है। शाजिया 10 लाख चेक और 15 लाख कैश में लेने को तैयार है।इसी प्रकार दूसरे स्टिंग में कुमार विश्वास को अपने कवि सम्मलेन के लिए चेक के बदले नकद रुपये मांगने देखा गया। इस स्टिंग पर कुमार विश्वास का कहना है कि मैं अपने कार्यक्रम के लिए पैसे लेता हूं और उस पर टैक्स भी देता हूं। नकद पैसे लेने गैरकानूनी नहीं है।
वहीं आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि हमारे कई विस प्रत्याशियों के स्टिंग ऑपरेशन किए गए हैं। उनकी जांच की जा रही है। अगर किसी के खिलाफ भी आरोप सिद्ध हुए तो उसे चुनाव मैदान से हटा देंगे। भ्रष्टाचार को किसी भी सूरत में सहन नहीं किया जाएगा।पोर्टल के स्टिंग में किसी को पैसा लेते-देते तो नहीं दिखाया गया है लेकिन जो बातचीत है उससे शाजिया के इरादों और आम आदमी पार्टी के दावों पर ज़रूर सवाल उठते हैं।
ईमानदार और साहसी होने के रचे गए आभामंडल सच की एक कौंध से कैसे चकनाचूर हो जाते हैं यह चंद घंटों में देश-दुनिया ने देख लिया। तहलका के तेजपाल और आम आदमी पार्टी के केजरीवाल के पीछे लामबंद उनके सारे सिपहसालार एकाएक लोगों के मन से उतर गए हैं।संयोग है कि जिन तीरों से धर्मनिरपेक्षता के सूरमाओं ने समय-समय पर विरोधियों पर वार किए आज वह तीर दोनों के अस्तित्व में जा धंसे हैं।तहलका मचाने वाले खुलासे तरुण ने बहुत किए, चुन-चुनकर शिकार करने और एकपक्षीय पत्रकारिता के आरोप भी लगातार लगे, किन्तु स्टिंग महारथी का यह विषधर रूप लोगों की कल्पना से भी परे था। तरुण के समस्त तेज को एक झटके में हर लेने वाली यह घटना एक खिड़की की तरह है जहां से देखा जा सकता है कि ‘निर्भय और निरपेक्ष’ कहलाने वाला मीडिया गिरोह कैसा दुस्साहसी और निर्लज्ज हो चला है। नैतिकता की बात छोडि़ए, कानून से भी बेपरवाह। अपनी सजा खुद ही तय करने वाला।
आम आदमी पार्टी के बारे में वेबसाइट के खुलासे उन लोगों के लिए दिल तोड़ देने वाले हैं जो इस पूरी टोली को ईमानदारी का पर्याय मान बैठे थे।’बिजनेस क्लास’ में सफर, सभी उम्मीदवार ‘डमी’ और भाड़े के स्वयंसेवक जैसे खरे वचन विधानसभा चुनाव में पार्टी का बुलबुला बैठा दें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। हालांकि पार्टी ने तमाम फजीहत के बावजूद अपने समर्थकों को हौसला दिलाने के लिए प्रेस कांफ्रेंस के जरिए सफाई जारी की लेकिन बुझे हुए चेहरे बता रहे थे कि बात बिगड़ चुकी है।
वैसे, दोनों ही मामलों में ‘प्रबंधन पक्ष’ की भंगिमा मामले पर लीपापोती करने वाली रही है। आम आदमी पार्टी (ए.ए.पी.) प्रमुख केजरीवाल की तरफ से जहां ‘अभी तो और कई स्टिंग आएंगे’ जैसे बेपरवाही भरे बयान आए, वहीं तहलका की प्रबंध संपादक शोमा चौधरी तरुण तेजपाल के घृणित अपराध की गंदगी छिपाने वाली मुद्रा में दिखीं। ध्यान रखना चाहिए कि यही केजरीवाल कुछ रोज पहले तक अपनी पार्टी और उम्मीदवारों को अन्य से अलग और ईमानदार बता रहे थे और यही शोमा चौधरी कुछ रोज पहले बलात्कार संबंधी आपत्तिजनक बयान मामले में ट्वीटर पर सीबीआई प्रमुख रंजीत सिन्हा के निष्कासन की मांग कर रही थीं।कठघरे में खड़ी ए.ए.पी. का खुद ही इस मामले की जांच के लिए कहना और तरुण तेजपाल का स्वयं को प्रायश्चित तौर पर छमाही सजा देना अपर्याप्त, अस्वीकार्य और न्याय व्यवस्था को बौना बताने वाला कदम है।बहरहाल, इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट के ‘एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म’ या प्रतिष्ठित मैगसायसाय जैसे पुरस्कार अपनी जगह, अपनी और अपनी मंडली की करतूतों का फल भोगने के लिए केजरीवाल और तेजपाल को तैयार रहना चाहिए।
असलियत में आम आदमी पार्टी की स्थापना का आधार जाति, धर्म से ऊपर उठ कर स्वच्छ राजनैतिक विकल्प बताया गया था, साथ ही पहले से मौजूद सभी दलों से खुद को भिन्न बताया गया, इसीलिए छोटी से छोटी गलती भी बड़ी है, क्योंकि वह छोटी गलती ही उसे उसी श्रेणी में खड़ा कर देती है, यही कारण है कि, अधिकाँश लोग स्टिंग के पक्ष में खड़े हैं।
स्टिंग ऑपरेशन को गंभीरता से लेने के पीछे भी कई कारण हैं। लोगों के दिमाग में कई बातें जमा हैं, जो स्टिंग ऑपरेशन के चलते ताज़ा हो गई हैं, इसीलिए अधिकाँश लोग स्टिंग ऑपरेशन को सही मानते हुए आम आदमी पार्टी की तीखी आलोचना कर रहे हैं। कुछ घटनायें हाल की ही हैं। तौकीर रज़ा को लेकर आम आदमी पार्टी की जमकर फजीहत हुई थी, जिस पर पार्टी को सफाई देनी पड़ी थी, जबकि इस सवाल का जवाब अब भी बाक़ी है कि, जाति-धर्म से ऊपर उठ कर राजनीति करने का दावा करने वालों को एक विवादित व्यक्ति की शरण में क्यूं जाना पड़ा?
आईएमसी के अध्यक्ष तौकीर रज़ा पर क़ानूनन बरी हो जाने के बाद भी आरोप लगता है कि, बरेली शहर में वर्ष 2008 में हुए दंगों को भड़काने में उनकी अहम भूमिका थी। इस सब के अलावा लेखिका तस्लीमा नसरीन और जॉर्ज बुश के विरुद्ध फतवा जारी करने के कारण तौकीर रजा विवादित रहे हैं और उन्हें कट्टरपंथी माना जाता है, साथ ही जिस समाजवादी पार्टी की अरविंद केजरीवाल आलोचना करते रहे हैं, उसकी सरकार में तौकीर रज़ा दर्जा राज्यमंत्री भी हैं। चुनाव जीतने के लिए भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा जैसे दल जिस प्रकार हिन्दू-मुस्लिम एजेंडा इस्तेमाल करते रहे हैं, वैसे ही उन्होंने किया, तो फिर वह अलग कहाँ हुए?
इसी तरह, उन पर दिल्ली में धर्म के आधार पर मतदाताओं से वोट मांगने का आरोप लगा है। धर्म के आधार पर दिल्ली में पर्चे बांटे गये। इस प्रकरण में भाजपा की शिकायत पर चुनाव आयोग जाँच कर रहा है। आम आदमी पार्टी पर हाल ही में विदेशों से चंदा लेने का भी आरोप लगा, जिसकी जांच चल रही है। इसके जवाब में उनकी ओर से कहा गया कि, भाजपा और कांग्रेस भी हिसाब दे, तो वह भी हिसाब दे दें और कांग्रेस व भाजपा के हिसाब से यह सिद्ध हो जाये कि उन्होंने भी विदेश से चंदा लिया है, तो इससे उनकी पार्टी स्वच्छ कैसे साबित हो जायेगी?
इसके बाद इंडिया अगेंस्ट करप्शन के खाते में जमा धन को लेकर भी आरोप लगे, तो जवाब आया कि सब खर्च हो गये। पर सवाल उठता है कि, उस आन्दोलन में जनता स्वतः जुड़ रही थी। शहर से लेकर गाँव तक लोग खुद ही करप्शन के विरुद्ध आन्दोलन में साथ दे रहे थे, ऐसे में इतनी बड़ी रकम कहाँ, क्यूं और कैसे खर्च कर दी गई, इसका एक-एक रूपये का हिसाब अपनी विश्वसनीयता कायम रखने के लिए और खुद को औरों से अलग सिद्ध करने के लिए सार्वजनिक क्यूं नहीं करना चाहिए? इस सबके अलावा व्यवहारिक दृष्टि से आम आदमी पार्टी के नेताओं की भाषा शैली बेहद निचले स्तर की रहती है। प्रधानमंत्री के पद पर बैठे व्यक्ति जैसे भी हैं, मुख्यमंत्री के पद पर आसीन व्यक्ति जैसे भी हैं, वे सब लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत ही उन पदों पर बैठे हैं। उन्होंने पद किसी और माध्यम से हथियाये नहीं हैं, ऐसे में उन पदों की गरिमा का ध्यान रखते हुए ही शब्दों का चयन कर बोलना चाहिए।
पिछले दिनों इस संबंध में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अरविंद केजरीवाल पर मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था। कुमार विश्वास और दो कदम आगे बढ़ कर बोलते हैं। वह कविता पाठ के बीच में सोनिया गाँधी, मनमोहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेई के बारे में ऐसे-ऐसे शब्द बोलते रहे हैं कि, अशिक्षित व्यक्ति भी बोलने से पहले कई बार सोचेगा। वे प्रतिष्ठित पुरस्कारों के संबंध में भी लगातार अशालीन भाषा का प्रयोग करते रहे हैं। जिस मीडिया ने उन्हें इस स्तर पर पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई है, उस मीडिया पर भी वे बेहद भद्दी टिप्पणी करते रहे हैं, वह भी तब, जब वह कवि के साथ एक शिक्षक भी हैं, उनसे ऐसी भाषा शैली की आशा देश भर में किसी को नहीं है। अधिकाँश लोगों के मन में यह यह भाव था कि, आम आदमी पार्टी अन्य राजनैतिक दलों से भिन्न हैं, इसलिए यह स्वच्छ राजनैतिक वातावरण के साथ स्वच्छ शासन-प्रशासन देंगी, लेकिन चुनाव जीतने के लिए जब वही पुराने हथकंडे अपनाए जा रहे हैं, तो फिर भिन्न कहाँ हुए?, विकल्प कहाँ हुए? वैसे ही हुए, जैसे सब हैं, इसलिए सब से बड़ा सवाल यह भी उठता है कि, दिल्ली जैसे छोटे से राज्य की सत्ता हथियाने के लिए कुछ ही दिनों में इतना गिर गये, तो देश की सत्ता पाने के लिए क्या नहीं करेंगे?
दोनों ही मामलों को ध्यान से देखे तो गौर करने वाली बात है कि दोनों ही लोगों ने खुद को बेकसूर भी बता दिया और तरुण तेजपाल ने खुद ही अपनी सजा भी तय कर ली।आम आदमी पार्टी ने संवाददाता सम्मेलन में स्टिंग ऑपरेशन में फंसे अपने सदस्यों को क्लीन चिट दे दी। दूसरे को चोर और अपने को साधु बताने की परंपरा हमारे समाज की विशेषता है। इस खेल में मूर्ख हमेशा जनता को ही बनाया जाता है। सच यही है कि हमारे देश की जनता सदा से ही नेताओं के इशारों पर मूर्ख बनती रही है। केजरीवाल ने भी जनता को मूर्ख बनाया है और संभव है कि जनता उन्हें महामूर्ख बना दे।

विवेक मनचन्दा ,लखनऊ

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply