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लिव-इन-रिलेशनशिप सिर्फ रिश्ते के नाम पर अय्याशी है।

मेरे विचार
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पश्चिम की तरह हमारे आधुनिक समाज में भी लिव-इन-रिलेशनशिप के मामले बढ़ रहे हैं लेकिन इससे कई तरह की समस्याएं भी पैदा हो रही हैं। अक्सर शारीरिक जरूरतों के आधार पर बनाए गए इन रिश्तों के टूटने का सबसे अधिक खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले और नए कानून में इसे इसी वजह से कुछ वैधानिक मान्यता देने की बात की गई है लेकिन ऐसे रिश्तों में सामाजिक उत्तरदायित्वता का न होना सबसे बड़ी कमी है, जो कई तरह के अवसाद का कारण बनती है।
सुप्रीम कोर्ट का यह वक्तव्य दक्षिण की अभिनेत्री खुशबू के खिलाफ दर्ज 22 आपराधिक मामलों की सुनवाई करते हुए आया है। खुशबू ने शादी पूर्व यौन संबंधों को जायज ठहराया था। यह बात नैतिकता के ठेकेदारों के गले नहीं उतरी और उन्होंने उसके खिलाफ केस दर्ज कर दिया। स्त्री-पुरुष के संबंधो को अपने ढंग से परिभाषित, निर्धारित करने वाले और उनको नियंत्रित करने वालों को यह भला कैसे रास आती कि उनके द्वारा निर्धारित मानकोंके अनुसार वर्जित शादी पूर्व यौन संबंध लिव इन रिलेशनशिप की वकालत एक लड़की कर रही है। यह वही समाज के तथाकथित ठेकेदार हैं जो धर्म, नैतिकता की दुहाई देकर समय-समय पर तुगलकी फरमान जारी करने से बाज नहीं आते हैं। अंतर्जातीय विवाह, प्रेम विवाह करने वालों को नफरत के दृष्टि से देखते हैं और उनको सबक सिखाने के लिए किसी भी हद को पार करने से गुरेज नहीं करते हैं। मीडिया में अक्सर ऐसी खबरें देखने सुनने को मिलती रहती हैं।
समाज का एक वर्ग आज भी महिलाओं को अपनी जूती समझता है। उसे यह बिल्कुल मंजूर नहीं कि कोई महिला अपने यौन संबंधों और प्रेम संबंधों पर कुछ भी खुलकर बोले या अपनी राय प्रकट करे। आज भी शादी, कैरियर, बच्चे, यौन संबंध बनाने जैसे सभी निर्णय पुरुष लेता है। महिला को मात्र उसके निर्णयों का अनुगामिनी होना पड़ता है। शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार के साथ आज महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुई हैं। अपने खिलाफ हो रहे अत्याचार , यौन शोषण के खिलाफ आवाज भी बुलंद कर रही हैं, परंतु आंकड़ों के हिसाब से यह प्रतिशत कम है। वहीं पुरुषों का एक बड़ा वर्ग भी इस सामायिक बदलाव को स्वीकार कर रहा है। कई वर्जनाएं टूटी हैं, नयी परंपरा कायम हुई है, रूढिवादी ताकतें झुकने को मजबूर हुई हैं। महिलाओं में बढ़ी आत्मनिर्भरता, ऊँचे पदों पर उनकी उपस्थिति , अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता एक सुखद अहसास कराती है। परंतु जिस तरह से समाज में शादी पूर्व यौन संबंधों, लिव इन रिलेशनशिप को जायज ठहराने के लिए बहस छिड़ी है और समाज का प्रबुद्ध वर्ग और पढ़ी-लिखी महिलाएं इसके समर्थन में आगे आ रही हैं, इसके दूरगामी परिणामों के बारे में सोच कर मन में कहीं आश्ंाका होती है कि भारतीय समाज का भविष्य क्या होगा। क्या हमारा समाज गर्त में नहीं जा रहा है। जहाँ कहा जाता है कि ‘शील नारीस्थ भूषणम वो नारी आज आज आधुनिकता,
वो नारी आज आज आधुनिकता,स्वतंत्रता के नाम पर शील त्याग स्वच्छंद यौनाचार को बढ़ावा दे रही है और बड़ी बेशर्मी से इसे अपनी मर्जी से स्वीकार कर रही हैं। पहले तो केवल पुरुषों के शादी पूर्व, विवहात्तेर शारीरिक संबंध रखने के मामले देखने-सुनने में आते थे, आज महिलाएं भी बड़ी बेबाकी से अपने शादी पूर्व और विवोहत्तर संबंधो पर चर्चा करती नजर आती हैं। उन्हें लिव इन रिलेशनशिप रखने में कोई गुरेज नहीं।
भारतीय संस्कृति में विवाह को एक संस्था एवं संस्कार का दर्जा दिया गया है। किसी भी संस्था अथवा संस्कार के अपने नियम-कायदे होते हैं। विवाह बंधन में बंधने वाले स्त्री-पुरुष से उन नियमों का निर्वाह करने की अपेक्षा रखी जाती है। अधिकांश स्त्रियाँ उन नियमों का अक्षरशः पालन भी करती हैं किंतु पुरुष उन नियमों को प्रायः अनदेखा करते चले जाते हैं। पुरुषों के विवाहेत्तर संबंधों को थोड़ी-सी हाय-तौबा के बाद भुला दिया जाता है। पत्नी से यही उम्मीद की जाती है कि वह अपने पति के विवाहेत्तर संबंध पर बवाल न मचाए और इसे पुरुषोचित अधिकार माने।समाज यदि स्त्री से यही अपेक्षा रखना चाहता है तो फिर विवाह के दौरान वर से सात वचन रखाए ही क्यों जाते हैं? यह एक ऐसा प्रश्न है जो सदियों से स्त्रीजीवन के आकाश में कृष्णपक्ष की भांति अंधेरा बिखेरे हुए है।मेट्रो शहरों में स्त्री ने अपनी स्वतंत्रता के रास्ते ढूँढ़ने शुरू कर दिए हैं किंतु गाँव और कस्बों में अभी भी वही अंधेरा है।
पति के विवाहेत्तर संबंधों की ओर से आँख मूंद कर जीना स्त्री की विवशता है जबकि स्वयं स्त्री विवाहेत्तर संबंध नहीं बना सकती हैं यदि चोरी-छिपे बना भी लेती हैं तो वह भीतर ही भीतर अपराधबोध से घुटती रहती है। प्रेमी और पति के बीच पिसती हुई खुशी के दो पल के लिए मृगमारीचिका में भटकती रहती है।
विवाह पूर्व यौन संबंधों की प्रवृत्ति अब आधुनिक शहरी समाज की बपौती नहीं रही। । भारतीय समाज एक वर्जनायुक्त समाज है और यहां शादी से पहले शारीरिक संबंध कायम करना तो दूर उसके बारे में सोचना भी निषिद्ध माना जाता रहा है। आमतौर पर इस दायरे को पार करने वालों को अपने देश में चरित्रहीन माना जाता है। कहने का मतलब यह कि यौन सुख की प्राप्ति के लिए उठाये गए किसी भी‘अनुचित’ कदम को सीधे-सीधे चरित्र से जोड़ दिया जाता है। बदलाव का पहिया भले जितनी तेजी से घूम रहा हो, लेकिन अपनी कुछ मान्यताओं के मामले में इस देश का बहुलतावादी समाज अपनी धुरी पर कायम है। विवाह पूर्व संभोग और कौमार्य पर हाल में संपन्न इस देशव्यापी सर्वेक्षण में बड़े ही रोचक तथ्य उभर कर सामने आए हैं। मसलन भारतीय समाज में शादी से पूर्व यौन संबंध क्या अब भी वर्जित है या इसे अब स्वीकृति मिलने लगी है? इस सवाल के जवाब में १० में से ७ लोगों का कहना था कि शादी से पहले यौन संबंध अब भी अनुचित है। पूर्वी, मध्य और दक्षिणी भारत के लोगों की बड़ी तादाद इस जवाब के पक्ष में है। छोटे शहर और बुजुर्ग तबका मजबूती से इस भावना के पक्ष में हैं कि विवाहपूर्व यौन संबंध एकदम गलत चीज है, जबकि २४ फीसदी लोगों का कहना था कि धीरे-धीरे ऐसे बदलाव को मान्यता मिल रही है।
”लिव-इन-रिलेशनशिप में पुरुषों के पास खोने को कुछ नहीं होता, जबकि महिलाओं के पास बचाने को कुछ नहीं होता। लिव-इन-रिलेशनशिप सिर्फ रिश्ते के नाम पर अय्याशी है।’’लिव-इन-रिलेशनशिप टूटने का सबसे ज्यादा आघात महिलाओं को लगता है। महिलाएं भावनात्मक रूप से रिश्तों के प्रति ज्यादा सजग होती हैं। ऐसे रिश्तों की तरफ आकर्षण के पीछे फिल्मों और विज्ञापनों का बहुत बड़ा योगदान है। इसका असर अब छोटे शहरों तक दिखने लगा है। वर्तमान पीढ़ी को लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे संबंध इसलिए आकर्षित करने लगे हैं, क्योंकि विवाह की परंपरा उन्हें दकियानूसी बंधन लगने लगी है। पाश्चात्य संस्कृति में रमा एक बड़ा तबका मानता है कि बिना शादी किए, महिला-पुरुष साथ रहकर जीवन व्यतीत कर सकते हैं। इन सोचों के बावजूद भारत में लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों को समाज पति-पत्नी का दर्जा देने को तैयार नहीं है। भारतीय समाज शादी से पहले यौन संबंध बनाने को नैतिक पतन मानता है।एक तरफ पश्चिमी देशों में शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने पर रोक लगाने की मांग उठ रही है, तो दूसरी तरफ पश्चिम से प्रभावित भारत में लिव-इन-रिलेशनशिप का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। तमाम विरोधों के बावजूद, सरकारी स्तर पर इसे संरक्षण भी मिल रहा है।
मौजूदा लिव-इन-रिलेशनशिप के स्वरूप को सिर्फ शारीरिक जरूरतों की पूर्ति के लिए बनाए गए रिश्ते का नाम दिया जा सकता है। यह एक ऐसा दोस्ताना संबंध है, जिसमें शारीरिक जरूरतों की पूर्ति तो की जाती है, लेकिन सामाजिक उत्तरदायित्वों के प्रति काई जिम्मेदारी नहीं होती। विवाह के पश्चात पति-पत्नी पर कई तरह की पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक जिम्मेदारियां होती हैं, जबकि लिव-इन-रिलेशनशिप अल्पकालिक और जरूरतों पर आधारित होती है। स्वार्थपूर्ति के लिए ऐसे रिश्तों का बन जाना और टूट जाना आम बात है। जरूरत खत्म होते ही आपसी प्यार भी खत्म हो जाता है और लिव-इन-रिलेशनशिप का मायाजाल भी। 14 मई 2013 को एक सम्मेलन में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस। एन। श्रीवास्तव ने कहा कि लिव-इन-रिलेशन में व्यक्ति जब तक चाहे अपने साथी के साथ रहने के लिए स्वतंत्र होता है। इसमें न ही किसी तरह की बाध्यता होती है और न ही जिम्मेदारियां। इसलिए एक दूसरे से अलग होने में आसानी होती है। जस्टिस फखरुद्दीन ने भी इसे अस्थायी संबंध बताया।
लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों के लिए भारत में अलग से कोई कानून नहीं है। समय-समय पर न्यायालय के फैसलों द्वारा इन्हें संरक्षण दिया जाता रहा है। 1978 में पहली बार इस तरह का मामला सामने आया था। बद्री प्रसाद पिछले 50 साल से अपनी महिला मित्र के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रहते आ रहे थे। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में उन्हें विधिक रूप से पति-पत्नी माना था। 4 मार्च 2002 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि ‘कोई भी स्त्री और पुरुष अपनी मर्जी से, बिना शादी किए एक दूसरे के साथ रहने के लिए स्वतंत्र है।’ 15 जनवरी 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने 30 साल से बिना शादी किए एक-दूसरे के साथ रह रहे प्रेमी युगल के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि ‘दोनों बालिगों का साथ रहना कानूनी रूप से अवैध नहीं है।’
न्यायालय ने लिव-इन-रिलेशनशिप की न्यनूतम समय सीमा को रेखांकित नहीं किया है, फिर भी इसे ‘वन-नाइट स्टैंड’ और ‘वीकएंड स्टैंड’ से अलग माना है। एक स्कूल टीचर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता पाने के लिए रिलेशनशिप के बारे में कुछ शर्तें बताईं हैं। पहली शर्त के तहत लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले युगल को समाज के सामने, पति-पत्नी के तौर पर आना चाहिए। दूसरी शर्त, दोनों शादी की कानूनन उम्र को पूरा कर चुके हों। तीसरी शर्त, दोनों के बीच के रिश्ते कानूनी रूप से शादी करने के लिए वर्जित न हो। चौथी शर्त, वे दोनों स्वेच्छा से लंबे वक्त तक पति-पत्नी के तौर पर रहे हों। फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने समाज को लिव-इन-रिलेशनशिप के मायने समझाने की कोशिश की है। संसद ने लिव-इन-रिलेशन को घरेलू हिंसा कानून के दायरे में लाकर महिलाओं को राहत तो दे दिया, लेकिन संबंधों के टूटने के साथ ही टूटे सपनों को जोडऩे का कोई उपाय सुझाने में असमर्थ रहा है।
रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं का उनके परिवार से अक्सर नाता टूट जाता है। इसके बाद उनके साथ क्या हुआ, इसकी जानकारी परिजनों को भी नहीं होती। रिलेशनशिप के दौरान, भावनात्मक पलों को फोटो अथवा वीडियो में कैद कर अपना मकसद साधने वाले अपराधियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। वेश्यावृत्ति, मादक पदार्थों एवं हथियारों की तस्करी और आतंकवादी गतिविधियों में इस्तेमाल करने से लेकर अधिकारियों के सामने परोसने के भी मामले उठते रहते हैं। आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त तत्वों और लव-जिहाद के मोहरों पर ऐसे संबंधों के माध्यम से महिलाओं को शिकार बनाने के आरोप लगते रहे हैं।
महिलाओं द्वारा लिव-इन रिश्ते बनाकर ब्लैकमेल करने के मामले भी आते हैं। कहा जाने लगा है कि इस पूंजीवादी युग में जल्दी धनवान बनने के लिए महिलाएं भी रिश्तों की मर्यादा तार-तार करने से गुरेज नहीं करतीं। मकसद से बनाए गए इस रिश्तें में महिलाओं के प्रति हिंसा के विरुद्ध बनाए गए कानूनों का डर दिखाकर वे पुरुष मित्र से मोटी रकम की मांग करती हैं। ऐसे अपराधों को रोकने में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला महत्वपूर्ण माना जा सकता है। 20 मई 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि ‘दो बालिगों द्वारा मर्जी से संबंध बनाने पर बलात्कार का आरोप नहीं लगाया जा सकता है, बशर्ते कि महिला को शादी का झांसा नहीं दिया गया हो।’ कोर्ट ने फैसले में कहा कि ‘कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी बन जाती हैं कि शादी नहीं होती हैं। ऐसे में बलात्कार का मुकदमा नहीं बनता है।’ एक मामले में शादी का वादा कर लंबे समय तक यौन संबंध बनाए जाने के बावजूद, मजबूरी वश लड़का शादी करने में असमर्थ रहा था। इससे नाराज लड़की ने प्रेमी के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाया था।
ऐसे संबंध आत्मिक आकर्षण के बजाय शारीरिक आकर्षण पर ज्यादा टिके होते हैं और जब यह आकर्षण समाप्त होने लगता है, तो यही प्रेम बोझ लगने लगता है। वासना से सने ऐसे रिश्तों में ज्यादातर वे युवा होते हैं, जो मन में उठने वाली भावनाओं पर नियंत्रण रखने में असमर्थ और सामाजिक बंधनों को धत्ता बताने में रोमांच महसूस करते हैं या फिर अपने षडयंत्र को सफल बनाने की चाहत रखते हैं।
लिव इन रिलेशनशिप शादी पूर्व यौन संबंधों ने भारतीय संस्कृति की चूलें हिलाकर रख दी है। अगर हम अब भी समय पर ना चेते और पश्चिमीकरण का अंधानुकरण करने में व्यस्त रहे तो थे। आंधी हमें बहुत दूर ले जाएगी, हम अपनी पहचान खो बैठेंगे। लिव इन रिलेशनशिप शादी पूर्व और विवाहेत्तर संबंधों से जन्मे बच्चों का भविष्य क्या होगा? भले ही कानून ने उन्हें पैतृक संपत्ति में जायज औलाद के बराबर हक दिए हैं परंतु प्रश्न यह उठता है कि क्या उन्हें समाज में उतनी ही स्वीकारता मिलेगी, क्या उन्हें माता-पिता परिवार का सुख मिलेगा, दूसरे इन संबंधों को मान्य करने से समाज में बहुपत्नी-बहुपति रखने का चलन बढ़ जाएगा। हमारी आने वाली पीढिय़ों का क्या होगा, हम उन्हें विरासत में अपभ्रंश संस्कृति सौंप जाएंगे। उस भावी समाज में अनैतिक संबंधों की भरमार होगी, चारित्रिक पतन अपने चरमोत्सकर्ष पर होगा और पारिवारिक विघटन के किस्से चर्चा-ए-आम होंगे।

विवेक मनचन्दा,लखनऊ

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