Menu
blogid : 13858 postid : 664865

आम आदमी पार्टी का जोरदार तरीके से राजनीतिक पटल पर छा जाना

मेरे विचार
मेरे विचार
  • 153 Posts
  • 226 Comments

लोकसभा चुनावों के फाइनल से पहले सेमीफाइनल मुकाबला माने जा रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पारी से हारी है। तीन राज्य में भाजपा को खुशी मिली और दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने कमाल कर दिया। लेकिन हर जगह हार आई, तो कांग्रेस के खाते में।
दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। वहीं पहली बार राजनीति में कूदी आम आदमी पार्टी (आप) का प्रदर्शन बेहद चौंकाने वाला रहा।सबसे बड़ा उलटफेर नई दिल्ली सीट पर रहा, जहां मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने 25 हजार से ज्यादा मतों से हरा दिया।मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भाजपा की लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का जनादेश सौंप दिया है। भाजपा के कई प्रमुख मंत्री चुनाव हार गए हैं, फिर भी भाजपा ने 2008 से भी ज्यादा सीटें हासिल करके कांग्रेस को करारा झटका दिया है।छत्तीसगढ़ के बारे में अक्सर कहा जाता रहा है कि वहां सत्ता की चाबी बस्तर के पास है, मगर विधानसभा के नतीजों ने इस मिथक को तोड़ दिया है। इस नक्सल प्रभावित आदिवासी क्षेत्र में सीटें गंवाने के बावजूद भाजपा छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह की अगुवाई में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है।राजस्‍थान में भाजपा की चली आंधी ने उसे प्रदेश के इतिहास में सबसे अधिक सीटें जीतने वाली पार्टी बना दिया है। पार्टी की सफलता में महंगाई और भ्रष्टाचार से परेशान जनता पर मोदी फैक्टर के असर को खासा अहम माना जा रहा है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों में किसी को स्पष्ट जनादेश नहीं मिला है। असल में ये नतीजे चौंकाने वाले हैं। तमाम एग्जिट पोल के दावों को झुठलाते हुए अरविंद केजरीवाल के नेतृत्‍व में आप ने 28 सीटें हासिल की हैं। भाजपा को 31 सीटें मिली हैं।
दिल्ली के दिल में राज करने वाली कांग्रेस को दिल्लीवासियों ने अपने दिलोदिमाग से बाहर निकाल फेंका। सीट जीतने के मामले में वह दहाई अंकों तक नहीं पहुंचती दिख रही। दिल्ली में कांग्रेस विरोधी माहौल कुछ ऐसा रहा कि शीला दीक्षित और उनके चार मंत्री अपनी सीट तक नहीं बचा पाए।आम आदमी पार्टी के लिए चुनावी राजनीति की इससे बेहतर शुरुआत कोई नहीं हो सकती। अरविंद केजरीवाल की झाड़ू ने शीला की कुर्सी साफ कर दी।यह साफ है कि राष्ट्रीय राजधानी की जनता ने भाजपा और आप को चुना है। और भड़ास निकाली शीला दीक्षित पर। लेकिन यह शीला से ज्यादा कांग्रेस की तरफ जनता की बेरुखी दिखाती है।ऐसा इसलिए, क्योंकि जिन मुद्दों पर जनता ने उन्हें आड़े हाथों लिया, उसके लिए काफी हद तक केंद्र की यूपीए सरकार जिम्मेदार है।
पड़ा। दिल्‍ली में शीला ने लंबी और धमाकेदार पारी खेली। और उनकी ताकत का खात्मा हुआ, तो उसका श्रेय भाजपा से कहीं ज्यादा आम आदमी पार्टी को जाता है! यह जरूर कहा जा सकता है कि बीते पांच साल में उनके रुख में कुछ तल्‍खी आई, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। आम आदमी पार्टी के शानदार प्रदर्शन ने भारतीय जनता पार्टी के अरमानों पर पानी फेर दिया है। 28 सीटें हासिल करने के बाद ‘आप’ ने साफ किया है कि वह न तो किसी पार्टी का समर्थन करेगी और न ही किसी से समर्थन लेगी।

राजनीतिक उदासीनता के दौर में आम आदमी पार्टी की जीत अच्छाई की जीत है।अगर केजरीवाल की बात करें तो ना सिर्फ उनकी पार्टी चुनावी अखाड़े में पहली बार उतरी, बल्कि उन्होंने भी पहली बार चुनाव लड़ा। दिल्ली में कांग्रेस को लगातार तीन बार सत्ता दिलाने वाली पार्टी की दिग्गज नेता शीला दीक्षित के खिलाफ उन्होंने चुनाव लड़ने का ऐलान किया। अरविंद के पास एक सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने का विकल्प था, लेकिन वह शीला दीक्षित के राजनीतिक इतिहास से नहीं डरे। क्या होगा अगर पार्टी का नेता ही अपनी सीट हार जाए? ऐसा ‘अगर-मगर’ का सवाल केजरीवाल के जेहन में नहीं आया और जनता ने उनकी इस दिलेरी और साहस का सम्मान किया।कांग्रेस और बीजेपी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी की बात करती हैं। लेकिन जब चुनाव आते हैं तो वो दोनों उम्मीदवारों के चयन के मामले में ईमानदारी की बजाय ‘जीतने की योग्यता’ को तवज्जो देती हैं। लेकिन केजरीवाल ने उन्हें गलत साबित कर दिया। पार्टी बनाते वक्त उन्होंने जनता से वादा किया कि वह किसी भी दागी व्यक्ति को टिकट नहीं देंगे। अन्य पार्टियों द्वारा आरोप लगाए जाने के बाद उन्होंने चुनाव से महज 4 दिन पहले पार्टी का एक उम्मीदवार हटा दिया। जाहिर है आम आदमी पार्टी को अपने उसूलों और आदर्शों की परवाह है।सब जानते थे कि केजरीवाल की पार्टी के पास एक ही चीज है- ईमानदारी। यही उसकी दौलत है और यही उसका विरोधी पार्टियों को मात देने का हथियार, इसलिए अन्य पर्टियों ने कई मर्तबा उनकी और उनकी पार्टी की छवि पर दाग लगाने की कोशिश की। कई बार खुद केजरीवाल और पार्टी के अन्य नेताओं को निशाना बनाते हुए उनके खिलाफ जांच कराई गई। यहां तक कि अन्ना हजारे ने भी पार्टी की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठाए। लेकिन केजरीवाल डटे रहे और अपनी ईमानदारी और पारदर्शिता का सबूत देते रहे। थोड़े वोटों से हारने वाली शाजिया इल्मी पर जब एक स्टिंग ऑपरेशन के जरिए गलत ढंग से पैसे वसूलने के आरोप लगे तो उन्होंने उम्मीदवारी छोड़ने का फैसला कर लिया था। चुनावी मैदान में वह तभी वापस आईं जब ये पाया गया है कि उन्हें फंसाने के लिए स्टिंग ऑपरेशन की टेपों के साथ छेड़छाड़ की गई है। जनता ने यह सब देखा और ‘आप’ को समर्थन दिया, क्योंकि उसके लिए ईमानदारी काफी मायने रखती है।अधिकांश राजनीतिक पार्टियां युवाओं को सत्ता में भागीदारी की बात करती हैं। लेकिन सच तो यह है कि उनके ये जुमले सिर्फ होठों तक ही सीमित होते हैं। चुनावों में जब टिकट देने की बात आती है तो पार्टी आलाकमान दिग्गज और अनुभवी नेता को ही चुनता है। उनके मुताबिक राजनीति कूटनीति का खेल है, जो कि तजुर्बेकार नेता ही समझ सकते हैं। अगर वह युवा को टिकट देते भी हैं तो सत्ता और पार्टी की कमान उन्हीं उम्रदराज नेताओं के पास रहती है। लेकिन केजरीवाल इस स्थिति के उलट युवा वोटर और युवा उम्मीदवारों को तवज्जो दी। नतीजा सबके सामने है। दिल्ली विधानसभा का सबसे युवा सदस्य उन्हीं की पार्टी का है, जिसकी उम्र 25 साल है। जनता ने केजरीवाल के इस ‘युवा’ आदर्श पर मुहर लगाई।वैसे तो कांग्रेस और बीजेपी दोनों जनता से जुड़े मुद्दों की बात करते दिखते हैं। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के मुद्दे को दरकिनार कर दिया। बीजेपी ने इस मुद्दे को अपनी सुविधा और फायेद के मुताबिक भुनाया। इसी मुद्दे ने बीजेपी को अपना सीएम उम्मीदवार हर्षवर्धन को बनाने के लिए मजबूर कर दिया, जबकि केजरीवाल ने इस समस्या को एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया। उन्होंने महंगी बिजली-पानी और आम जनता से जुड़ी समस्याओं को मुद्दा बनाया। साफ है कि ये विधानसभा चुनाव मोदी बनाम राहुल गांधी नहीं, बल्कि जनता बनाम व्यवस्था की जंग थे।
इस बार भाजपा की जीत और कांग्रेस की हार से बड़ी खबर अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी का जोरदार तरीके से राजनीतिक पटल पर छा जाना है। जब आप ने राजनीतिक मैदान में कदम रखा था, तो प्रेक्षकों को यह अनुमान था कि यह पार्टी कांग्रेस और भाजपा के वोट काटेगी। किंतु ऐसी उम्मीद नहींथी कि जनता का व्यापक समर्थन उसे मिलेगा। दिल्ली में भाजपा के बाद आप का स्थान है और कांग्रेस बेहद कम सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही है। भाजपा को अपने पारंपरिक मत मिले, और राष्ट्रमंडल खेलों में गड़बड़ी, 16 दिसम्बर की भयावह घटना, महंगाई, बिजली दरों में बढ़ोत्तरी आदि से नाराज जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया और अपनी नाराजगी को मतों में तब्दील कर आप को आगे बढ़ाया। कांग्रेस संगठन ने भी शीला दीक्षित को एक तरह से अकेले ही मैदान में छोड़ दिया था। अगर कांग्रेस शीला दीक्षित की जगह किसी युवा चेहरे को सामने लाती, युवाओं की टीम के साथ काम करती तो मुमकिन है उसकी स्थिति थोड़ी बेहतर होती। राजस्थान और दिल्ली में एंटी इनकम्बेन्सी स्पष्ट देखने मिली है। जबकि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में यह चुनावी कारक बेअसर दिखा।
आप को दिल्‍ली चुनाव में पहली बार में ही यह जीत यूं ही हासिल नहीं हुई है। इस चुनाव में दिल्‍ली में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी आप ने इसके लिए लोगों के बीच न केवल अपनी पहुंच बनाई, बल्कि बहुमत में आने पर स्‍वच्‍छ छवि वाली सरकार देने का भी आश्‍वासन दिया। इन सबके बीच अरविंद केजरीवाल एक हीरो बनकर उभरे। अरविंद केजरीवाल ने अपनी नौकरी छोड़ देश को भ्रष्‍टाचार मुक्‍त बनाने का संकल्‍प लिया और समाजसेवी अन्‍ना हजारे के नेतृत्‍व में यूपीए सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया।
बहरहाल, चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम जनभावनाओं का आईना दिखला रहे हैं। भाजपा अपनी जीत से उत्साहित होकर 2014 के आम चुनावों में अपनी दावेदारी और मजबूती से करेगी और कांग्रेस हार के बाद आत्ममंथन करेगी। महंगाई नियंत्रित करने में बेबसी, भ्रष्टाचार के नित नए प्रकरण, जनता से सीधे संवाद की कमी, नेताओं का अहंकार, जनसामान्य से दूरी, सत्ता का घमंड और इलेक्ट्रानिक व नए मीडिया में भाजपा व आप के मुकाबले कमजोर उपस्थिति, ऊपरी तौर पर कांग्रेस की हार के ये कुछ कारण नजर आते हैं। यूं सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने इस जनादेश को स्वीकार करने के साथ हार के कारणों के विश्लेषण, आत्ममंथन की बात कही है, पर उनके लिए ऐसा करना तब तक आसान नहींहोगा, जब तक जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की ईमानदार और सक्रिय फौज खड़ी नहींहोगी और दिग्गज नेताओं का उनसे प्रत्यक्ष संवाद नहींहोगा। भाजपा और कांग्रेस अब आम चुनावों की तैयारियों में जुट जाएंगे और देखने वाली बात यह होगी कि आम आदमी पार्टी क्या राष्ट्रीय स्तर पर भी इन दोनों पार्टियों को किसी तरह चुनौती देने की स्थिति में होती है? अगर ऐसा हुआ तो यह मानना होगा कि भारतीय राजनीति एक बार फिर निर्णायक करवट लेने वाली है।
विवेक मनचन्दा,लखनऊ

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply