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महिलाओं के प्रति यौन हिंसा -Jagran Junction Forum

मेरे विचार
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चाहे उसे निर्भया कहिये या दामिनी या चाहे जो भी नाम रख लीजिए। या ऐसे ही वो तमाम अनगिनत नाम जो देश के कोने-कोने में रोज किसी न किसी रूप में यौनिक हिंसा या विभत्सतता की शिकार होती हैं … यह एक लम्बी सूची हो सकती है। पर सवाल अभी भी वहीँ है कि क्या आज समाज में नारी पूर्णतया सुरक्षित है ?
दुनिया की आधी आबादी महिलाओं की है। महिला मां होती है, बहन होती है, पत्नी होती है, दोस्त होती है, सारे रिश्ते महिलाओं के बिना संभव नहीं हैं, फिर भी आज समाज में महिलाओं की स्थिति बड़ी ख़राब है। आज के समाज में महिलाओं ने ये सिद्ध कर दिया है कि वो तमाम सारे कार्य जो पुरुष कर सकते हैं महिलाये भी कर सकती हैं और पुरुष से बेहतर कर सकती हैं।
दिल्ली गैंगरेप की वारदात को एक साल पूरा हो गया।पिछले एक साल में आरोपी पकड़े गये, उन्हें फांसी की सजा सुनायी गई, सरकार ने निर्भया फंड स्थापित किया और न जाने क्या-क्या हुआ। लेकिन बलात्कार की वारदातें अभी भी जारी हैं।पिछले एक साल में दिल्ली में ही रेप की वारदातों में 125 फीसदी का इजाफा हुआ। वहीं छेड़छाड़ के मामलों में 417 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। इससे भी ज्यादा शर्मनाक यह है कि इसी एक साल में बलात्कार पर तमाम अजीबो-गरीब धारणायें सामने आयीं। ये धारणाएं आम आदमी से लेकर तमाम जानी मानी हस्त‍ियों की सोच को प्रतिबिंबित करती है। कहते हैं न जितने लोग उतनी बातें। वैसे ही समाज में ऊंचे पद या प्रतिष्ठा रखने वालों ने ही ऐसी बातें कर डालीं, जिनके बारे में सोच कर किसी को भी गुस्सा आ सकता है।
गत वर्ष 16 दिसंबर,2012 को देश कि राजधानी दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार काण्ड ने देश को झकझोर डाला था। उस समय राजधानी की कानून व्यवस्था को लेकर समूचे देश में लोगों ने प्रदर्शन किये थे मगर आज भी देश में महिलाओं कि स्थिति में रत्ती भर भी सुधार दिखाई नहीं पड़ता है।अभी चन्द दिनों पहले ही एक महिला पत्रकार से मुंबई में हुए गैंगरेप ने जहां मुंबई को शर्मिंदा कर दिया है। वहीं देश में एक बार फिर बलात्कार पर बहस को तेज कर दिया है।बलात्कारी का कोई विशेष सम्प्रदाय ,धर्म, या पेशा नहीं होता है। अब किसी भी व्यक्ति पर भरोसा करते हुए डर लगता है।संयोगों की इस कड़ी में संत आसाराम और जस्टिस एके गांगुली भी शामिल हैं।आसाराम ने साल भर पहले घनघोर जनाक्रोश के दौर में अपनी तथाकथित संतई का परिचय देते हुए यह ज्ञान बघारा कि अगर निर्भया बलात्कारियों के सामने हाथ जोड़ कर दया की भीख मांगती तो बलात्कारियों का दिल पसीज जाता। आज, गुजरात पुलिस आसाराम से पूछ सकती है कि खुद पर चल रहे बलात्कार-प्रकरणों में उन्होंने कितने दयाभाव का परिचय दिया है? निर्भया मामले की बरसी पर जस्टिस गांगुली का किस्सा विशेष रूप से याद किया जाना चाहिए। उन्होंने लॉ इंटर्न की अस्मत के साथ अशालीन व्यवहार ठीक उस वक्त किया था, जब बलात्कारियों के विरुद्ध जनाक्रोश पूरे देश में आग के सैलाब की तरह बह रहा था। हाल ही में धर्मगुरु आसाराम बापू पर एक लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगा है जिसके चलते आजकल आसाराम जैल में सींखचों के पीछे हैं।आध्यात्मिक संत आसाराम बापू भगवान हैं या हैवान, यह तय करना मुश्किल है। आसाराम पर अब तक तमाम आरोप लगे और कई आरोपों में वे बरी भी हो गए लेकिन 16 साल की नाबालिग लड़की ने बलात्कार का आरोप लगाकर उन्हें बहुत मुश्किल में डाल दिया है।इस लड़की ने बताया कि जोधपुर के आश्रम में उसके साथ यौन शोषण किया गया। दिल्ली के कमला मार्केट में बाकायदा उसने केस दर्ज किया है। मेडिकल टेस्ट में लड़की के साथ यौन शोषण की पुष्टि भी हुई है।
दिल्ली पुलिस ने शून्य आधार पर धारा 306 (बलात्कार), 354 (छेड़छाड़) और 509 (जान से मारने की धमकी) के अलावा बाल योन शोषण अत्याचार के तहत मामला दर्ज किया है।
कभी अपनी खोजी पत्रकारिता से देश के राजनीति में भूचाल लाने वाले तहलका के संस्थापक तरुण तेजपाल पर भी अपनी एक महिला पत्रकार के साथ यौन उत्पीड़न का गम्भीर आरोप लगा है।
आखिर देश की आधी आबादी कब तक सहम के जिए, कब तक शोषण का शिकार होती रहेगी। एक साल बाद भी ये सवाल कायम है। ऐसे ही कुछ सवालों से घिरे हैं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस ए के गांगुली। उन पर एक लॉ इंटर्न ने यौन शोषण का आरोप लगाया है।यौन उत्पीडन का आरोप लगाने वाली लॉ इंटर्न ने जो खुलासा किया है वह मामले को तहलका के पूर्व संपादक तरूण तेजपाल जैसा ही गंभीर है। उसने अपने बयान में खुलकर बताया कि उस दिन दिल्ली के फाइव स्टार होटल में आखिर उसके साथ हुआ क्या था। पीडिता ने बताया है कि पूर्व जस्टिस गांगुली ने उसके सामने यौनाचार का प्रस्ताव रखा और रूम शेयर करने को कहा। जस्टिस गांगुली ने उसे बताया कि उसके लिए अलग रूम की व्यवस्था करना मुमकिन नहीं है। उन्होंने लॉ इंटर्न से कहा कि क्या वह उनके रूम में रूक सकती है। उसने बताया कि उसके विरोध के बावजूद जस्टिस गांगुली ने करीब आने की कोशिश की। उसने बताया कि डिनर के दौरान उन्होंने (गांगुली ने) उसकी पीठ पर हाथ रखा। सहयोग पर सहमत होने पर मेरा शुक्रिया अदा किया। मैं वहां से चली गई। यह उनके लिए साफ संकेत था कि मुझे उनका बर्ताव पसंद नहीं है। बावजूद इसके उन्होंने मेरी पीठ से हाथ नहीं हटाया।
यह घटना कथित तौर पर पिछले साल 24 दिसंबर को दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में हुई थी, जहां यह इंटर्न एक रिपोर्ट के सिलसिले में जस्टिस गांगुली की मदद कर रही थी। उस वक्त राजधानी में एक छात्रा के साथ चलती बस में बर्बर गैंगरेप की घटना के विरोध में जबरदस्त प्रदर्शन हो रहे थे। युवा इंटर्न ने हलफनामे में कथित तौर पर कहा है, उन्होंने मुझे होटल में रूकने और रात भर काम करने के लिए कहा था। मैंने मना कर दिया और कहा कि मुझे काम जल्दी खत्म कर अपने पीजी एकोमोडेशन में लौटना है, लेकिन कथित रूप से जस्टिस गांगुली इसके बाद भी उसे रूके रहने और अपने साथ एक ग्लास वाइन पीने के लिए दबाव डालते रहे।
पिछले महीने लडकी ने कानूनी समाचारों से जुडी एक वेबसाइट पर इस घटना के बारे में ब्लॉग लिखा था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए तीन जजों की समिति बनाई थी। गौरतलब है कि लॉ इंटर्न ने इस कथित घटना के बारे में अब तक पुलिस में शिकायत नहीं की है। महिला प्रशिक्षु वकील के साथ यौन उत्पीडन के आरोपों में घिरे अशोक कुमार गांगुली को पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से बर्खास्त करने की मांग जोर पकडती जा रही है।
पिछले साल 16 दिसंबर को हुई दिल्ली गैंगरेप की दर्दनाक घटना के बाद महिला सुरक्षा को लेकर कड़ा कानून बना, लेकिन अपराधों का ग्राफ तेजी से बढ़ता जा रहा है। देश की राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 से लेकर 16 दिसंबर 2013 के बीच के समय पर गहराई से नजर डालें तो 125 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ बलात्कार की घटनाएं तेजी से बढ़ती जा रही हैं।
दिल्ली में इस साल नवंबर तक 1493 रेप के मामले दर्ज किए गए, जो पिछले साल 661 थे। और छेड़छाड़ के 3237 केस दर्ज हैं, जो पिछली बार 625 थे, वहीं यौन उत्पीड़न की बात करें तो 165 के मुकाबले इस साल बढ़कर 852 हो गए।
पिछले दो-तीन दशकों में अगर हालात पर नजर डाली जाए तो यह बात जाहिर हो जाती है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ते ही गए हैं। किसी भी उम्र और वर्ग की स्त्री आजकल अपने को सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रही है। यहां तक कि अबोध बच्चियां और बुजुर्ग स्त्रियां तक दरिंदगी की शिकार हुई हैं। कुछ मामलों में तो अपराधियों ने क्रूरता की सारी हदें पार कर डाली हैं। देश की राजधानी दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में ऐसी घटनाएं घटीं जिनसे पूरे देश का सिर शर्म से झुक गया। आम जनता को सड़कों पर उतरने तक का निर्णय लेना पड़ा और सरकार को इन स्वत:स्फूर्त ढंग से उभरे जन आंदोलनों को दबाने के लिए ऐसे कदम उठाने पड़े, जो स्वयं उसके लिए अप्रिय थे। उच्चतम पदों पर बैठे लोगों तक को स्वयं यह स्वीकार करना पड़ा कि अब देश में महिलाओं के लिए हालात सुरक्षित नहीं रह गए हैं। इसके लिए सैकड़ों कारणों को जिम्मेदार बताया गया और एक सुर से सबका गुस्सा सरकार के खिलाफ फूटा। दूसरी तरफ, सरकार ने स्वयं को इस मामले में लगभग मजबूर जैसा महसूस किया। निश्चित रूप से यह एक गंभीर स्थिति है।
यह कहने की जरूरत नहीं है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों के दायरे में केवल दुष्कर्म और यौन शोषण जैसे अपराध ही नहीं आते, दहेज उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, ऑनर किलिंग आदि कई तरह के अपराधों की शिकार महिलाएं ही होती हैं। इनमें कई मामलों में तो स्वयं उनके घर-परिवार के लोग ही शामिल होते हैं। जब अपने परिवार के लोग ही किसी के खून के प्यासे हो जाएं, तो ऐसे मामलों में कोई सरकार या व्यवस्था क्या कर सकती है? महिलाओं पर अत्याचार और अपराध रोकने के लिए सरकार की ओर से कई कानून बनाए जा चुके हैं। कमोबेश उनका अनुपालन भी किया जा रहा है। कई बार इस मामले में लापरवाही भी नजर आती है, लेकिन असल में वह किसी भी कानून को लागू करवाने के लिए बनाए गए संस्थानों में बैठे कुछ व्यक्तियों के नजरिये का नतीजा होता है, न कि सरकार किसी को ऐसा कुछ करने के लिए कहती है। नजरिये का यह मामला केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं होता। किसी व्यक्ति का नजरिया भी उसकी सामाजिक-पारिवारिक परिस्थितियों की देन होता है। इसके बावजूद जब भी कोई घटना घट जाती है तो हम सब सरकार को ही जिम्मेदार ठहराते हैं और उस पर ही अपना गुस्सा उतारते हैं।
सजा के खौफ से अगर अपराध कम होते हैं तो महिलाओं के खिलाफ वारदात में फिलहाल कमी आने की उम्मीद मत रखिये। ताजा आंकड़े बताते हैं कि जहां महिलाओं के खिलाफ हर तरह के अपराध बढ़ रहे हैं, वहीं उनको अंजाम देने वालों पर आरोप साबित होने की दर घट रही है। यौन शोषण के मामलों में सजा मिलने की दर पिछले 11 साल में 67 फीसद से घटकर सिर्फ 38 फीसद रह गई है। इसी तरह बलात्कार के मामलों में यह 27 से घटकर 14 फीसद हो गई है।
पिछले साल दिसंबर में दिल्ली में चलती बस में हुई हैवानियत के बाद ‘दिल्ली पालिसी ग्रुप’ ने देश भर में महिलाओं की स्थिति पर एक व्यापक रिपोर्ट तैयार की है। इसे तैयार करने वाली टीम की प्रमुख डॉ. राधा कुमार कहती हैं कि यह तो नहीं कहा जा सकता कि जितने मामले दर्ज हुए, सभी में लोगों को सजा होनी चाहिए। क्योंकि कुछ मामले फर्जी भी हो सकते हैं। लेकिन अभी तो लगभग आधे मामलों में जांच ही नहीं होती। अपराधी को सजा मिलनी तो दूर की बात है। महिलाओं के खिलाफ हैवानियत को लेकर दिखने वाले जनाक्रोश का यह फायदा तो जरूर हुआ है कि बड़े शहरों में पुलिस ऐसे मामलों को दबाने या लापरवाही करने से थोड़ा डरती है। लेकिन यह बदलाव तात्कालिक है या स्थायी, यह तो समय के साथ ही पता लगेगा। साथ ही इसका फायदा बड़े शहरों के बाहर तक पहुंचा होगा, इस पर भी आशंका है।
सच तो ये है कि महिलाएं किसी भी वक्त घर से बाहर निकले, वो सुरक्षित नहीं हैं। आज भी राजधानी दिल्ली की सड़कें महिलाओं के लिए पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं। अब भी महिलाओं के पास अपनी सुरक्षा को लेकर पुलिस, प्रशासन और सरकार से कई सवाल है। सिर्फ राजधानी दिल्ली की बात करें, तो 16 दिसंबर की घटना के बाद यहां प्रत्येक 24 घंटे में बलात्कार के चार नये मामले सामने आ रहे हैं। दिल्ली में इस साल 15 अक्तूबर तक रेप के 1330 नये मामले दर्ज किये गये। चौंकानेवाली बात यह है कि पिछले वर्ष रेप के 590 मामले ही दर्ज किये गये थे।
निर्भया बलात्कार मामले ने यदि हम सबको झकझोर कर धर दिया तो केवल इसलिए कि हम सभी साझा आतंक के साये में जी रहे हैं। यह आशंका हमें हर पल सताती रहती है कि हमारी बहन-बेटियां सकुशल घर लौट कर आएंगी या नहीं। उस सरकार पर से ही हमारा विश्वास डिग गया है, जिस पर हमने अपनी सुरक्षा की जिम्मेवारी सौंप रखी है। सच कहें तो इस पूरे मामले में कहीं हमारे तमतमाये चेहरे, कहीं हमारी भिंची मुट्ठियां, और कहीं कंदील की लौ हमारी इसी भावना की अभिव्यक्ति बने। इस मामले में मृत्युदंड का फैसला सुनाते न्यायमूर्ति योगेश खन्ना ने सही ही कहा कि इस कांड ने हमारे सामूहिक अंत:करण को झकझोर डाला।16 दिसंबर की वह घटना जिसके कई नामों में एक नाम दिल्ली गैंग-रेप है, अपने अनेक रूपों में जस की तस ठहरी हुई है, न उसकी स्मृतियों से छुटकारा मिला है और न ही उसकी परिणतियों से। बरस बीतने को आया तो मानो निर्भया-मामले की याद दिलाते हुए आज से चंद रोज पहले दिल्ली के राजपथ पर तकरीबन वैसी ही घटना हुई। पारिवारिक कारणों से अवसाद-ग्रस्त गोरखपुर की एक नवयुवती ट्रेन से दिल्ली पहुंचने के चंद घंटों के भीतर गैंगरेप का शिकार हुई। यानी वह जगह जहां बरस भर पहले निर्भया नाम के झंडे तले उपजे जनाक्रोश ने देश की आधी आबादी को सार्वजनिक-जीवन में अभय बनाने का आंदोलन चला था।
महानगरों में कॉलेज या दफ्तर के लिए घर से निकलने वाली महिलाओं के विरुद्ध बलात्कार की बढ़ती घटनाएं बता रही हैं कि यह परिभाषा गलत नहीं है। महिलाएं शहरों के आधुनिक कल्चर में भी उतनी ही असुरक्षित हैं और आर्थिक विकास ने उनके साथ एक उपनिवेश जैसा शोषण और दमन का रिश्ता ही बनाया है। मुंबई की लोकल ट्रेन में एक किशोरी के साथ आधा दर्जन लोगों की मौजूदगी में हुआ बलात्कार हो , दिल्ली विश्वविद्यालय में एक छात्रा के साथ हुई सामूहिक जबर्दस्ती हो या दूसरे शहरों में लड़कियों के चेहरों पर तेजाब फेंके जाने की घटनाएं- वे हमें बताती हैं कि गगनचुंबी इमारतों वाले महानगरों में औरत का कद बढ़ने की बजाए घट ही रहा है।

विवेक मनचन्दा ,लखनऊ

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